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________________ परिशिष्ट २५९ ५. चतुरन्तरितमार्गणा विवक्षित वद्धि से नीचे बीच में चार वृद्धि को छोड़कर प्ररूपणा करना । यथा-प्रथम अनन्तगुणवद्धि के स्थान की अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि के स्थान की प्ररूपणा। इस मार्गणा में एक (१) स्थान है। किस मार्गणा में कितने-कितने स्थान होते हैं१. अनन्तरमार्गणा में १कडंकप्रमाण स्थान जानना चाहिये। क्योंकि अनन्तभागवृद्धि के एक कंडकप्रमाण स्थान व्यतीत होने पर असंख्यातभागवद्धि का प्रथम स्थान प्राप्त होता है । असत्कल्पना से असंख्यातभागवद्धि के ५ के अंक के पूर्व अनन्तभागवृद्धि के चार स्थान होने से ४ स्थान जानना चाहिये। २. एकान्तरितमार्गणा में कडंकवर्ग और कडंकप्रमाण । (असत्कल्पना से कडंकवर्ग=४४४=१६+४=२०)। ३. द्वयन्तरितमार्गणा में __ कडंकघन, कंडकवर्ग दो और कंडकप्रमाण (असत्कल्पना से ४४४४४=६४+१+१६+४=१००)। ४. त्र्यन्तरितमार्गणा में-- कंडकवर्ग, ३ कंडकघन, ३ कंडकवर्ग और कंडकप्रमाण। (असत्कल्पना से १६ ४ १६=२५६ + ' १९२+४८+४=५००)। ५. चतुरन्तरितमार्गणा में ८ कंडकवर्गवर्ग, ६ कंडकघन, ४ कंडकवर्ग और १ कंडकप्रमाण। (असत्कल्पना से .२५६ ४८= २०४८+ ३८४+६४+४=२५००)। इस प्रकार असत्कल्पना से प्रथम अनन्तगुणवृद्धि के स्थान से पूर्व (४+२० +१०० + ५०० + २५०० = ३१२४) स्थान होते हैं। २३. अनुभागबन्ध-विवेचन सम्बन्धी १४ अनुयोगद्वारों का सारांश (गाथा २९ से ४३ तक) । अनुभागबंध-विवेचन संबंधी १४ अनुयोगद्वारों के नाम यह हैं १. अविभागप्ररूपणा, २. वर्गणाप्ररूपणा, ३. स्पर्धकप्ररूपणा, ४. अन्तरप्ररूपणा, ५. स्थानप्ररूपणा, ६. कंडकप्ररूपणा, ७. षट्स्थानप्ररूपणा, ८. अधस्तनस्थानप्ररूपणा, ९. वृद्धिप्ररूपणा, १०. समयप्ररूपणा, ११. यवमध्यप्ररूपणा, १२. ओजोयुग्मप्ररूपणा, १३. पर्यवसानप्ररूपणा, १४. अल्पबहुत्वप्ररूपणा । इनका सारांश इस प्रकार है-- १. अविभागप्ररूपणा कर्मपरमाणु संबन्धी कषायजनित रस के निर्विभाज्य अंश को अविभाग कहते हैं । एक-एक (सर्वजघन्य रसयुक्त और सर्वोत्कृष्ट रसयुक्त) कर्मपरमाणु में सर्व जीवों की संख्या से अनन्तगुण रसाविभाग होते हैं। २. वर्गणाप्ररूपणा समान रसाविभागयुक्त कर्मपरमाणुओं के समुदाय को वर्गणा कहते हैं । सर्वजघन्य रसाविभामयुक्त कर्मपरमाणुओं के समुदाय की प्रथम वर्गणा होती है। इसमें परमाणु सबसे अधिक होते हैं । उससे एक स्वायु अधिक कर्म
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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