SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ .मति क्रम कर्म का नाम उत्कृष्टपद जघन्यपद - - - --.-..- . .. अनन्तगुण अनन्त गुणा विशेषाधिकार विशेषाधिक , स्वस्थान में तुल्य , तीन में से एक असंख्यात गुणा विशेषाधिक . परस्पर तुल्य ति.म. आयु अल्प असंख्य गुण असंख्य गुण ३०. जुगुप्सा ३१. भय ३२. हास्य-शोक ३३. रति-अरति ३४. स्त्री-नपुंसक वेद ३५. संज्वलन क्रोध ३६. ॥ मान ३७. पुरुषवेद ३८. संज्वलन माया ३९. , लोभ ४०. देवायु ४१. नरकायु ४२. तिर्यंचायु ४३. मनुष्याय ४४. देवगति ४५. नरक गति J ४६. मनुष्यगति ४७. तिर्यंचगति ४८. द्वीन्द्रिय ४९. त्रीन्द्रिय ५०. चतुरिन्द्रिय ५१. पंचेन्द्रिय ५२. एकेन्द्रिय आहा. शरीर ५४. वैक्रिय , ५५. औदारिक , ५६. तैजस , ५७. कार्मण , ५८. आ. आ. बंधन ५९. आ. तै. " ६०. आ. का. , अल्प विशेषाधिक विशेषाधिक अल्प उत्कृष्ट पदवत अल्प स्वस्थान में तुल्य विशेषाधिक अल्प विशेषाधिक असंख्यगुण (५) __ (४) अल्प (१) विशेषाधिक (२) अल्प विशेषाधिक जघन्यपद नहीं है
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy