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________________ परिशिष्ट २३१ इस प्रकार तृतीय स्पर्धक में २०२० आत्मप्रदेशों की चार वर्गणायें। चतुर्थ स्पर्धक ४ करोड १ वीर्याविभाग वाले ४८० आत्मप्रदेशों की ४७० , " " प्रथम वर्गणा द्वितीय , तृतीय , चतुर्थ , ४५० " " " इस प्रकार चतुर्थ स्पर्धक में १८६० आत्मप्रदेशों की चार वर्गणायें। पांचवां स्पर्धक ५ करोड १ वीर्याविभाग वाले ४४० आत्मप्रदेशों की ---४३० प्रथम वर्गणा द्वितीय , तृतीय . , चतुर्थ , ५ , ३ , , , . " " " , . . ." " " ४२० ४१० १७०० इस प्रकार पांचवें स्पर्धक में १७०० आत्मप्रदेशों की चार वर्गणायें । छठा स्पर्धक ६ करोड १ वीर्याविभाग वाले ४०० आत्मप्रदेशों की प्रथम वर्गणा द्वितीय , तृतीय , चतुर्थ , ३८० , ३७० " , , " " १५४० इस प्रकार छठे स्पर्धक में १५४० आत्मप्रदेशों की चार वर्गणायें। द्वितीय योगस्थान प्रथम स्पर्धक १८ करोड़ १ वीर्याविभाग वाले ५८५ आत्मप्रदेशों की ५७५ " " " ५६५ ॥ ॥ ॥ १८ , ४ , , , प्रथम वर्गणा द्वितीय , तृतीय , चतुर्थ , २२८० इस प्रकार प्रथम स्पर्धक में २२८० आत्मप्रदेशों की चार वर्गणायें।
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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