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________________ ...... कंडकप्रमाण स्थितियों के उत्कृष्ट अनुभाग अभी भी अनुक्त है। शेष सबका कथन कर दिया गया है। उनके लिये भी यह समझ लेना चाहिये कि नीचे-नीचे के क्रम से उनको अनन्त गुणित तव तक कहना चाहिये, जब तक सर्व जघन्य स्थिति प्राप्त होती है। "। इसी प्रकार मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, देवगति, देवानुपूर्वी, पंचेन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रऋषभनाराचसंहनन, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभगं, सुस्वर, आदय, यश-कीर्ति और उच्चगोत्र, इन पन्द्रह प्रकृतियों की तीव्रमंदता भी समझ लेना चाहिये । अब असातावेदनीय के अनुभाग की तीव्रता-मंदता का कथन करते हैं-- असातावेदनीय की जघन्य स्थिति में जघन्य अनुभाग सबसे कम है। द्वितीय स्थिति में जघन्य अनुभाग उतना ही होता है। तृतीय स्थिति में भी जघन्य अनुभाग उतना ही होता है। इस प्रकार सागरोपमशतपृथक्त्वं तक कहना चाहिये । उससे उपरितन स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा होता है, उससे द्वितीय स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा होता है । इस प्रकार तब तक कहना चाहिये, जब तक कंडक के असंख्यात बहुभाग व्यतीत होते हैं और एक शेष रहता है। उससे असातावेदनीय की जघन्य स्थिति में उत्कृष्ट पद में उत्कृष्ट अनुभाग- अनन्तगुणा होता है, उससे भी द्वितीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है, उससे भी तृतीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है । इस प्रकार तव तक कहना चाहिये, जब तक कंडकप्रमाण स्थितियां व्यतीत होती हैं। तत्पश्चात् जिस स्थितिस्थान से जघन्य अनुभाग कहकर निवृत्त हुए उससे उपरितन स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्त गुणा होता है । तत्पश्चात् पूर्वोक्त उत्कृष्ट अनुभाग विषयक कंडक से ऊपर प्रथम स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है, उससे भी द्वितीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा उससे भी तृतीय स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा होता है । इस प्रकार तब तक कहना चाहिये, जब तक फिर कंडकप्रमाण स्थितियां व्यतीत होती हैं। तदनन्तर जिस स्थितिस्थान से जघन्य अनुभाग कहकर निवृत्त हुए, उसके उपरितन स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा होता हैं। तत्पश्चात् फिर पूर्वोक्त दो कण्डकों से ऊपर कंडकप्रमाण स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग उत्तरोत्तर अनन्तगुणा कहना चाहिये । इस प्रकार एक-एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और कंडकप्रमाण स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण रूप से तब तक कहना चाहिये, जब तक कि जघन्य अनुभाग विषयक एक-एक स्थिति का 'वे सब और अन्य' इस प्रकार की अनुकृष्टि से परे कंडक पूर्ण होता है । ___ यहाँ उत्कृष्ट अनुभाग विषयक स्थितियां सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण हैं। उनसे ऊपर एक स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण कहना चाहिये, उसके पश्चात् सागरोपमशतपृथक्त्व' से उपरितन स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण होता है । तत्पश्चात् फिर पूर्वोक्त स्थितिस्थान से उपरितन स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण होता है । तदनन्तर सागरोपमशतपथक्त्व से ऊपर द्वितीय स्थिति में उत्कृष्ट अनभाग अनन्तगण होता है। इस प्रकार एक-एक "जघन्य और उत्कृष्ट अनुभाग को अनन्तगुण तंब तक कहते जाना चाहिये, जब तक कि अंसातावेदनीय की सर्वोत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होती है । कंडक प्रमाण स्थितियों के उत्कृष्ट अनुभांग अभी
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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