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________________ बंधनकरण ६७ तथा तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, प्राणापानवर्गणा, मनोवर्गणा और कार्मणवर्गणा---ये सभी वर्गणायें अग्रहण वर्गणाओं से अन्तरित हैं। तत्पश्चात् ध्रुवाचित्त और अध्रुवाचित वर्गणायें हैं, तदनन्तर चार शून्य वर्गणायें हैं, जो अन्तराल से युक्त हैं और उसके ऊपर। प्रत्येकशरीरी, बादरनिगोद, सूक्ष्मनिगोद तथा महास्कन्ध ये. चार वर्गणायें हैं। ये सभी वर्गणायें गुणनिष्पन्न नामवाली हैं तथा प्रत्येक वर्गणा का. अवगाह अंगुल के - असंख्यातवें भाग प्रमाण है। विशेषार्थ-वर्गणायें एक-एक परमाणु रूप तथा संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और अनन्त प्रदेशी भी होती हैं। इनमें एक-एक परमाणु वाली वर्गणायें परमाणुवर्गणा कहलाती हैं। यद्यपि वर्गणा शब्द समुदाय वाचक है, लेकिन यहाँ वर्गणा का योग्यता को लेकर अर्थ करना चाहिये । एक-एक परमाणु में वर्गणा शब्द अनेक पर्यायों के रूप में उपनिपात की अपेक्षा अर्थात् समाहित होने की अपेक्षा जानना चाहिये।' क्योंकि यदि परमाणुओं की वर्गणा (समुदाय) परमाणुवर्गणा कही जाय तो जगत में जितने भी परमाणु हैं, उनका समुदाय परमाणुवर्गणा कहलायेगी और ऐसा अर्थ करने पर आगे कहे जाने वाले अंगुल के असंख्यातवें भाग अवगाहना के कथन से विरोध का प्रसंग आता है। इसका कारण यह है कि एक-एक परमाणु रूप से समुदाय को प्राप्त सभी परमाणु सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। इसलिये एक-एक परमाणु ही परमाणुवर्गणा कहलाते हैं और ऐसी परमाणुवर्गणायें अनन्त हैं एवं वे संपूर्ण लोक में व्याप्त हैं। दो परमाणुओं के समुदाय रूप द्वि-परमाणुवर्गणा होती हैं, वे भी अनन्त हैं और सर्वलोक में व्याप्त हैं। इसी प्रकार त्रिपरमाणुवर्गणा आदि सभी वर्गणायें प्रत्येक अनन्त एवं समस्त लोक में व्याप्त जानना चाहिये। तीन परमाणुओं के समुदाय रूप त्रिपरमाणुवर्गणा होती है. और इसी प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक परमाणु की वृद्धि करते हुए संख्यात परमाणुओं की समुदाय रूप संख्यात वर्गणा कहना चाहिये। असंख्यात परमाणुओं की समुदाय रूप असंख्यात वर्गणायें होती हैं । क्योंकि असंख्यात के असंख्यात भेद होते हैं। इसी प्रकार उत्तरोत्तर वृद्धि से अनन्त परमाणुओं की समुदायात्मक अनन्त वर्गणायें होती हैं। क्योंकि अनन्त के अनन्त भेद होते हैं।.. १. यहां समान जातीय पुद्गले परमाणुओं के समुदाय को वर्गणा कहते हैं, के आधार को लेकर शंकाकार द्वारा प्रस्तुत इस शंका का-- 'परमाणु स्वतः एक होने से उनमें समुदायीपने का अभाव है, जिससे समुदायवाचक वर्गणा शब्द को परमाणु के साथ जोड़ना अनुचित है, तो फिर परमाणुवर्गणा- यह कैसे कहा जा सकता है ?' समाधान किया गया है कि परमाणु के स्वतः एक होने से उसमें समुदायीपने का अभाव है। लेकिन अनेक - स्कन्धादि पर्यायों के आविर्भाव होने की योग्यता का उसमें सदभाव पाये जाने से वर्गणा शब्द को परमाणु के साथ संयुक्त करके परमाणुवर्गणा कहा है। - श्रीमद् देवेन्द्रसूरि ने स्कन्ध रूप अनेक समुदायात्मक पर्यायों के आविर्भाव होने की अपेक्षा से परमाणु को परमाणुवर्गणा नहीं कहा है। वे सब परमाणुओं के समुदाय में वर्गणा शब्द का प्रयोग करते हैं-'इह समस्त लोकाकाशप्रदेशेषु ये केचन एकाकिनः परमाणवी विद्यन्ते तत्समुदाय: सजातीयत्वाद् एकावर्गणा ।'--.. .............. .. -शतक, गाथा ७५, टीका
SR No.032437
Book TitleKarm Prakruti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
PublisherGanesh Smruti Granthmala
Publication Year1982
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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