SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिक्खु दृष्टांत लंण थोड़ी हुवै । कारणीक नै काई भावै काई न भावै । तिण सू जूजूआ मेलता । इसी कारणीक रौ जाबता करता। १७२. थारै आसंका कठा तूं पड़ी ? कांकरोली मै सैहलोतां री पौल मै स्वामीजी उतरचा। पचावनां रै वर्स । रात्रि मै पौल री बारी खोलनै स्वामीजी बारै दिशा गया। जद हेमजी स्वामी पूछ्यौ-महाराज ! बारी खोलवा रौ अटकाव नहीं कांइ? जद स्वामीजी बोल्या-ए पाली रौ चौथजी संकलचौ दर्शन करवा आयौ । घणो संकीलौ तौ औ छै पिण इण बात री संका तौ इणरै ई न पड़ी। तौ थारै आ संका कठा तूं पड़ी? जद हेमजी स्वामी कह्यौ-महाराज म्हारै संका क्यांने पड़े, हूं तो पूछा करू छु । ___ जद स्वामीजी बोल्या-तूं पूछे छै इण रौ अटकाव नहीं । इणरौ (खिड़की खोलण रौ) अटकाव हुसी तो म्हे क्यांनै खोलसां। १७३. आंधा जीमणवाळा आंधाइ परसण वाला ज्यांरी आचार खोटौ श्रद्धा पिण खोटी इसा तो समदृष्टहीण गुरु नै इसा ही श्रद्धा भ्रष्ट समक्तहीण श्रावक । ते कहै-म्हानै भीखणजी साध श्रावक सरधै नहीं। जद स्वामीजी बोल्या-कोयलां री तौ राब, काळा बासण मै रांधी, अमावस नी रात्री, आंधा जीमण वाळा, आंधाइ परुसण वाला, जीमता जाय नै खूखारौ करै, कहै-खबरदार ! काळौ कुंखौ टाळजो। कांई टालै । सर्व काळी ही काळी भेळी हुवी। ज्यूं श्रद्धा आचार मै ठिकाणौं नहीं ते साध श्रावक किम हुवै । १७४. डांडा इ सूझ नहीं. भेषधार्या रा श्रावक बोल्या-भीखणजी ! इण बात रौ तार काढौ । जद स्वामीजी बोल्या-तार कांइ काढे डांडा इ सूझ नहीं । ज्यूं आधाकर्मी आदिक मोटा दोष ही सूझ नहीं तो छोटा दोषां री खबर किम पड़े। १७५. ढांकणी मैं उसार्यो वायरै वंग घरटी मांडी। पीसती जाय ज्यूं उडतौ जाय । आखी रात्री पीसनै ढांकणी मै उसार्यो। ज्यू साधपणौ श्रावकपणी लेयन जाण
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy