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________________ ६४ पछे घणीं नरमा करी । इसा वनीत तो बैणीरांमजी स्वामी इसा जबर भीखणजी स्वामीजी । भिक्खु दृष्टांत १६४. इसा स्वामीजी अवसर ना जाण बैणीरामजी स्वामी को - हूं थली मै जाऊं चन्द्रभाणजी सूं चरचा करूं । जद स्वामीजी बोल्या - थारै उणां चरचा करवा रा त्याग है । इसो हिज अवसर देखने औ त्याग कराया । इसा स्वामीजी अवसर नां जाण । १६५. आंख्यां गमावता दीसे है मेंणाजी आर्या ने अनै बैणीरांमजी स्वामी नै (आश्रयी नै ) स्वामीजी बोल्या - आंख्यां रो ओषध घणौ करै सो आंखां गमावता दीस है । तौ पिण ओषध छोड़ नहीं । पछे आंख्यां घणी कच्ची पड़ गई । ओषध घणौ कीधौ ति सूं आंख्यां नै जोखो थयो । १६६. ते लेवा जोग नहीं गुजरात सूं सिंघजी आय नाथद्वारे में स्वामीजी कनै दीक्षा लीधी । पछे कितरा एक दिन तो ठीक रह्यौ । पछै सिरयारी मै अयोग्य जाणने छोड़ दयौ । ते मांह पर हो गयौ । पछै खेतसीजी स्वामी बोल्या - सिंघजी नै प्रायश्चित्त देइ नै पाछो उरहो ल्यो, हूं जायनै ल्यावूं । जद स्वामीजी बोल्या - ते लेवा जोग नहीं । तौ पिण कमर बांधने ल्यावा नै त्यार थया । जद स्वामीजी कह्यौ - उणां भेलो थें आहार कीधी है तौ थां भेलौ आहार करवा रा त्याग है । इम सुणनै मोटा पुरुष कोइ ल्यावा नै गया नहीं । इसा जबर भीखणजी स्वामी । पछे सिंघजी रा समाचार सुण्यां ऊ तौ राळी ओढ़ने घरटी रै जोड़े सूत है । ******* १६७. जायगां माप आवो दोय साधां रे माहोमाहि अड़बी लागी । स्वामीजी कनै आया । इण लोट माही थी पाणी रा टपका पड़ता । ऊ तौ कहै - इती दूर आयो, कहै - इतरा पांवड़ा । परस्पर विवाद करें। समझाया समझ नहीं । जद स्वामीजी कह्यौ —थें दोनूं जणां डोरी ले जायनै जागा माप आवो । जद दोनूं जणां अड़बी छोड़ने सुद्ध होय गया ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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