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________________ दृष्टांत : ११२-११४ ४५ ११२. ते बुद्धो किण काम री ? सरीयारी में स्वामीजी चौमासौ कोधौ। विजैसिंहजी नाथजीदुवारै आवतां वर्षा रा जोग सं सरीयारी मै रह्या। मसुदी स्वामीजी रा दर्शण करबा आया । प्रश्न पूछवा लागा-पहली कूकड़ी हुई के अंडौ ? पहली घण हूवौ के अहरण । पहिलां बाप हूवी के बेटौ। इत्यादिक अनेक प्रश्नां रा जाब स्वामीजी युक्ति सूं दीधा । जद मसुदी राजी होय बोल्या-एह प्रश्न घणी जागा पूछ्या पिण इसा जाब किणहि दीधा नहीं। आपरी बुद्धि तो इसी है सो किण ही राजा रा मसुदी थया हुंता तौ घणां देशां रौ राज एक घरे करता। जद स्वामीजी बोल्या--पछै ऊ जाय कठे। मसुदी बोल्या-जाय तो नरक मै । जद स्वामीजी बोल्या बुद्धि जिणांरी जाणीय, जे सेवै जिन धर्म । ___ अवर बुद्धि किण काम री, सो पड़िया बांधे कर्म ॥ जिण बुद्धि फैलायां नरक पाने पड़े ते बुद्धि किण काम री, जद मसुदी घणां राजी हुवा। ११३. लातर गया जोधपुर मै स्वामीजी पधार्या । जद भेषधारी भेळा होय चरचा करवा आया। ऊंधी अवळी चरचा करवा लागा-जीव बचायां कांइ हुवै ? विजयसिंहजी पड़हौ फेरायौ तेहनौ कांइ थयौ ? इत्यादिक राज मै डौढ़ी लगावा लागा। जद स्वामीजी बोल्या-शास्त्र मै राजा री नरक गति कही । इत्यादिक सर्व चरचा शास्त्र खोल नै राजाजी कनै करौ । जब लातर गया। ११४. सम्यग्दृष्टि ! रुघनाथजी स्वामीजी ने पूछ्यौ विजयसिंहजी पड़हौ फेरायो, तालाब, कूवां पर गळना नखाया। दीवां पर ढाकणां दिराया, बूढा बंलद नै लादणी नहीं, बूढ़ा बाप री चाकरी करणी, इत्यादिक कार्यां मै राजाजी नै काइ हुवौ ? जद स्वामीजी बोल्या-राजाजी समदृष्टि है के मिथ्यादृष्टि ? इम पूछ्यां जाब देवा असमर्थ थया ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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