SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुष्टांत : ९२-९४ आयां खंतिविजय कहै - पात्र आय पड़घौ तिण सूं खाय जांणौ । जद स्वामीजी बोल्या - गुळ रै बदळ किण ही अमल बहिरायो, मिश्री रै बदळ सोमलखार बहिरायौ ते पिण थांरै लेखे खाय जाणी पात्र आय पङ्यौ तिण कारण ! जब घणों कष्ट हुवौ शुद्ध जाब देवा असमर्थ । ३७ ९२. खाधी तो मिश्री, जाण्यौ जहर पीपार नों वासी चोथजी बोहरौ पाली में दुकान मांड़ी । चोमासो उतऱ्यां स्वामीजी तिणरौ कपडौ लेवा गया । दोय वासती बहिराय पूछा कधी --हूं थांनै असाध सरधूं । थांनें बासती दीधी मोनै कांइ हुवौ ? जद स्वामीजी बोल्या - किण ही खाधी तो मिश्री नै जाण्यो जहर तौऊ मरे के न मरे ? जद स्वामीजी बोल्या - किण ही खाधी तौ मिश्री नै जाण्यौ जहर तो ऊ मरेकै न मरे ? जद ऊ बोल्यो -न मरै । उणरौ गुण मारवा रौ नहीं । तिम म्हे साध | त्यांनै तुमैं असाध जाणनै वहिरायौ तौ थारै जाणपणां खामी, पण साधां नै बहिरायां धर्म छै । ९३. आ वांचणी कुण दीधो ? स्वामीजी अमरसींगजी रे थांनक गया । माहै खेजड़ी नो रूख देखी स्वामीजी बोल्या–रात्री मै लघु परठता हुस्यो जद इणरी दया किम रहै ? तब त्यांरौ साध स्वामीजी री कूट काढनै बोल्यौ । जद स्वामीजी बोल्या - आकूट काढवा री वांचणी थांरा मन सूं इज सीख्या के गुरां दीधी ? जद अमरसींगजी चेला नै निखेध्यौ । स्वामीजी ने बोल्या - ओ तौ छै थे मन मैं कांइ आणजो मती । मूरख ९४. थारी कांई आसंग गुमानजी रौ लौ रतनजी बोल्यो - हूं भीखणजी सूं चरचा करूं । जद गुमानजी बोल्या - हे पिण भीखणजी सूं चरचा करतां संकां छा । सो थांरी कांइ आसंग ? जद रतनजी पूछ्यौ -क्यूं संको ? जद गुमानजी बोल्या - भीखणजी चरचा कीधां तिणरो जाब पकड़ उरी जोड़कर गृहस्थ ने सीखायनै गाम-गाम खुराब कर देवे । तिण कारण भीखण जी सूं चरचा करतां संकां ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy