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________________ दृष्टांत : ९१ जद खंतिविजय बोल्यौ-तमारा थी निक्षेपां नी चरचा करवी छ। स्वामीजी बोल्या-निक्षेपा किता? ते बोल्यौ-निक्षेप चार-नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव । स्वामीजी पूछ्यौ-यां च्यारां मै वंदना-भक्ति किसा नी करणी। खंतिविजय बोल्यौ-च्यारू ही निक्षेपा नी वंदना-भक्ति करवी। स्वामीजी बोल्या-एक भाव निक्षेपो तो म्हे पिण वांदां पूजां छां । बाकी तीन निक्षेपां नी चरचा रही। तिणमै प्रथम नाम निक्षेपो । किणही कुम्भार नों नाम भगवान दियौ । तिणनै थे वांदो के नहीं ? जद ते बोल्यो-तिणनै सूं वांदीय ? प्रभू नां गुण नथी। स्वामीजी बोल्या-गुण वाला नै तो म्हेइ वांदां छा। इम सुण जाव देवा असमर्थ थयौ। हिवै थापनां री चरचा स्वामीजी पूछी। रत्नां री प्रतिमा हुवै तौ बांदो के नहीं ? ते बोल्यौ-बांदां। बलि पूछ्यौ सोनां री प्रतिमा हुवै तौ बांदौ ? ते बोल्यौ-बांदां। रूपा री प्रतिमा हुवै तौ बांदौ ? ते बोल्यौ-बांदां। सर्व धात री प्रतिमा हवै तौ बांदो ? बांदां। पाषांण री प्रतिमा हुवै तौ बांदौ ? . तब ते बोल्यौ-बांदां। वली स्वामीजी पूछ्यौ-गोबर की प्रतिमा हुवै तौ बांदौ के नहीं ? खंतिविजय क्रोध करनै बोल्यौ-तमारा थी निक्षेपा नी चरचा करवी नहीं । तूं तो प्रभू नी आसातना करै। अमनें गमें नथी। इम कही चालतो रह्यौ । स्वामीजी पिण ठिकाण आया। ० हाथ क्यूं धूजे है ? पछै खंतिविजय नै लौकां कह्यौ-भीखणजी सूं चरचा करी । इम बारबार कहिवा थी खंतिविजय घणां लोकां सहित आसरे दश हाट रै आंतर आय बैठौ। हिवै स्वामीजी नै लोकां आय कह्यौ-खंतिविजयजी चरचा करवा आया है। सो आप पिण चाली। जद स्वामीजी बोल्या-म्हारा भाव तो अठैईज छै। खंतिविजयजी इतरी दूर आया है, चरचा करवा रौ मन हुसी तो इतरी दूर वले आय जावैला। जद लोकां खंतिविजय ने जाय कह्यौ। आप चालो। इम कहिन एक हाट रै आंतरै ल्याय बैसाण्यौ । बोल्यौ-अठा सूं तो नहीं सरकीस ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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