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________________ दृष्टांत : ५१-५३ २१ ५१. आत्मा सात के आठ ? माधोपुर मैं गूजरमलजी श्रावक रै नैं केसूरांमजी रे चरचा री अड़बी थई । श्रावक मैं आतमा गूजरमलजी तौ आठ कहै अनै केसूरांमजी सात कहै। गूजरमलजी बोल्या-चारित्र आतमां श्रावक मै नहीं हुवै तो नीलोती रा त्याग रौ कांई काम ? इतलै स्वामीजी पधाऱ्या। उणांरै माहो माही अड़वी देख नै, एक जणौं नैडौ आय छाने बात कर सकै नहीं तिणसू दोन पासै बाजोट मेल दीयो। पछै न्याय बताय नै स्वामीजी दोनूं जणां ने समझाय दीया। स्वामीजी कह्यौ-श्रावक मैं पांच चारित्र नहीं ते लेखै सात आतमाईज कैहणी अनै त्याग नी अपेक्षाय देशचारित्र कहीयै, इम कहीनै अड़बी मेटी। ५२. समगत रहणी कठण गूजरमलजी सूं स्वामीजी चरचा करतां पानौ बाचन बोल कह्यौ । जद गूजरमलजी कह्यौ--आप मोनै आखर बतावौ । जब स्वामीजी आखर बताय दीया नै बोल्या-गूजरनलजी ! थारै समक्त रैहणी कठिण है। आसता कची तिणसू । लोक सुणनै अचर्य थया। . पछै अंतकाल गूजरमलजी बोल्या-केसूरांमजी आदि भायां नै-स्वामी जी श्रद्धा आचार और तौ चोखा परूप्या, पिण 'नदी उतां धर्म' या बात तो स्वामीजी पिण खोटी परूपी। भायां घणौंइ कह्यौ-नदी ऊतरवा री आज्ञा सूत्र मैं भगवान दीधी छै तिणसू पाप नहीं। गूजरमलजी बोल्या-हीये बेस नहीं । जब लोक बोल्या-भीखणजी स्वामी कह्यौ थौ, थारै समक्त रैहणी कठण है सो वचन आय मिल्यौ। ५३. उठौ ! पडिकमणौ करौ पाली मैं रात्रि बखांण उठयां पछै स्वामीजी तौ बाजोट ऊपर बैठा। अनै दो भाया (विजयचंदजी पटवा तथा उणांरा साथी) दुकान हेठे ऊभा। चरचा करतां-करतां दोयांनइ समझायनै गुरु कराय दिया। इतरै पाछली रात्रि ना पडिकमणा री बेला आय गई । साधां ने कह्यौ-उठौ पड़िकमणी करौ । साध पूछ्यौ-आप कद विराज्या ? जद स्वामीजी कह्यौ-आ तौ पूछौ---कद सोया ?
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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