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________________ १८ भिक्खु दृष्टांत खेत वाह्यौ । पांच सौ मण चणां नीपना। पांचू जणां मतौ कीधौ -- घर में धन तौ मोकळौ है । यां चणां रौ दान धर्म करो । जब एक जण सौ मण वणां भिखाऱ्यां नै लूंटाय दीया । सौमण रा भूँगड़ा सेकाय दीया । तीजै सौ मण चणां री गूघरी करायनै खवाई | चौथे सौ मण चणां री रोटयां कराय पाखती खाटी करायनै जीमाया । पांच में सो मण चणां वोसिरायने हाथ लगावा रा त्याग कीया । सावद्य दान मैं पुण्य धर्म कहै, ज्यांने पूछीजै - घणौ धर्म किण न थयौ ? ४५. घणौ धर्म किणने ? (२) वलिदान ऊपर स्वामीजी दृष्टंत दीधौ - एक बूढो डोकरौ भिख्या Sairat फिरे । कि ही अनुकंपा आणने सेर चणां दीया । जब डोकरै किन हि नै कह्यौ - एक जण तो मोन सेर चणां दीया है, पिण दांत नहीं सो मोनै पीसे दौ । जब दूजी बाई अनुकम्पा आणने पीस दिया । आगे जाने किहि नै कह्यो - मोने एक जणै तो धरमात्मा सेर चणां दया है, दूजी बाई पीस दीया, तिणसं तूं मोने रोटी कर दे । जब तीजी बाई अनुकंपा आणण पांणी घालने सेर चून री रोटयां कर दीधी । ते रोटी खाय तृप्त थयौ । जब तृष! घणी लागी जद आगे जायने कहै - है रे कोइ धरमात्मा ! मोन पाणी पावै । hair बाई अनुकंपा आणने काचो पांणी पायौ । एक जण तो चांदीया, दूजी पीस दीया, तीजी रोटयां कर दीधी, ra त्रिखा लागी सो कोई दयावान पांणी पावै, जद चांरां मै घणौं धर्म किणनै थयौ ? ४६. इसा पोता चेला चाहिजे नहीं टीकमजी रौ चेली कचरौजी जालोर रौ वासी सरीयारी मैं स्वामीजी आयो । है भीखणजी कठै ? भीखणजी कठै ? जद स्वामीजी बोल्या - भीखण म्हारौ नांम है । जद ते बोल्यो - आपनें देखवा री म्हारै मन मै घणी थी । स्वामीजी बोल्या - देखो | पछे कचरौजी बोल्यो - मौने चरचा पूछौ । स्वामीजी बोल्या - थे देखवा नै आया थांने कांइ चरचा पूछां । तब ते बोल्यो -कांयक तौ पूछौ । जद स्वामीजी बोल्या - थांरे तीजा महाव्रत रौ द्रव्य, खेत्र, काल, भाव, •
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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