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________________ दृष्टांत : १३-१६ थारै लेखे नरक जावणहार थांरा गुरु ठहर्या । जब घणौं कष्ट हुवौ । जाब देवा समर्थं नहीं । १३. म्हारे आंगुण काढणा इज है किण ही कौ - अहो भीखणजी ! बाइसटोळा वाळा थांरा आंगुण का है। जद स्वामीजी कह्यौ - आंगुण काढै है के घालै है ? जब ते बोल्यो - आंगुण का है । जद स्वामीजी कह्यौ - छोनी काढता । कांयक तौ उवे काढै, कांक म्हे काढां । म्हांरै आंगुण काढणा इज है । १४. सातो पीपार मै कितराइक जणां मनसोबौ करने पूछ्यौ - हो भीखणजी ! लोकां मैं यूं कहै छै - 'सात-सात तौ देस्यूं नै एक-एक गिणस्यूं', तेहनों अर्थ कांई ? जद स्वामीजी कह्यौ - एतौ पाधरौ अर्थ छै । सात सुपारी देवै नै एक सातो गणै । लोक सुणने अचरज थया । 1 १५. थांरे पांनें नरक ईज पड़ी भीखणजी स्वामी देसूरी जातां घाणेराव नां महाजन मिल्या | पूछ्यौ -. थारो नाम कांई ? स्वामीजी बोल्या - म्हारौ नांम भीखण । जब ते बोल्या - भीखण, तेरापन्थी ते तुम्हें ? जद स्वामीजी को - हां, उवे हीज । जब ते क्रोध कर बोल्या - थांरो मूंहढ़ौ दीठा नरक जाय । तिवारे स्वामीजी कह्यौ - थांरो मूंहढ़ौ दीठा ? जब त्यां कह्यौ - म्हांरौ मूंहढ़ौ दीठा देवलोक नै मोख जाय । जद स्वामीजी कह्यौ - म्हैं तो यूं न कहां - 'मुंहढ़ो दीठां नरक स्वर्ग जाय' पिण थांरी कहिणी रै लेखे मूंहदौ तौ म्हे दीठौ सो मोख नै देवलोक तौ म्हे जास्यां । अनै म्हांरौ मूंहढ़ो थे दीठौ सो थांरी कहिणी ₹ लेखै थांरै पानें नरक ईज पड़ी । थांरौ १६. किण बात रो प्राछित्त संवत् अठारे पैंतालीस रै वर्षे पींपार चोमासौ कीधौ । हस्तुजो,
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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