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________________ हेम दृष्टांत मुनि हेमजी ने गृहस्थ अवस्था में अनेक व्यक्तियों से चर्चा की। प्रश्नों के उत्तर दिये । उन उत्तरों को उन्होंने स्वयं लिखाया। वे इस प्रकार हैं १. क्या इतनी चर्चा ही मुझे नहीं आती? हेमजी के वेषधारियों से स्वयं चलाकर पहले बोलने का त्याग था। वैसी स्थिति में अमरसिंहजी के स्थानक में जाकर खड़े हो गए । साधुओं ने पूछा- कहां के हो ? हेमजी स्वामी बोले-सिरियारी का हूं। इतना कहकर उनसे चर्चा के रूप में प्रश्न पूछा- सामायक जीव या अजीव ? तब वह साधु बोला- भीखणजी के श्रावकों से चर्चा करने की मेरे गुरु की आज्ञा नहीं है। बीच में दूसरी बात करके थोड़ी देर के बाद हेमजी स्वामी ने पूछा- तुम्हारा ओघा (रजोहरण) जीव है या अजीव ? तब वह बोला -- इतनी चर्चा ही मुझे नहीं आती क्या ? ओघा अजीव है। तब हेमजी स्वामी बोले- तुम कहते थे न भीखणजी के श्रावकों से चर्चा करने की मेरे गुरु की आज्ञा नहीं है, तो अब यह ओघे की चर्चा क्यों बतलाई ? या यों मानूं कि सरल प्रश्न तो बतला दिया और कठिन प्रश्न नहीं आता तब कहते हो-मेरे गुरु की आज्ञा नहीं । इस प्रकार निरुत्तर कर वापस आ गए। २. नरक में भी अजीव जाएगा? सिरियारी में टीकमजी से पूछा--जीव मारे, वह धर्म या पाप ? टीकमजी बोले-पाप। फिर पूछा-झूठ बोले वह धर्म या पाप ? टीकमजी बोले-पाप। चोरी करे, वह धर्म या पाप ? टीकमजी ने कहा-पाप । फिर पूछा--मैथुन, परिग्रह सेवन करे यावत् १८ पाप सेवन करे वह धर्म या पाप? टीकमजी बोले-पाप। तब फिर हेमजी स्वामी ने पूछा-पाप जीव या अजीव ? टीकमजी-पाप तो अजीव है। तब हेमजी स्वामी ने कहा-तुम्हारे कथनानुसार अजीव जीव को मारे, अजीव भूठ बोले, अजीव चोरी करे, अजीव स्त्री का सेवन करे, अजीव ही परिग्रह यावत् अठारह पाप का सेवन करे, तो नरक में भी अजीव जाएगा?
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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