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________________ हेम दृष्टांत १९. अव्रत डावी कानी के जीमणो कानी ? सरीयारी मै भेषधारी पूछयौ-भीखणजी जोड़ कीधी है"साध नै श्रावक रतनां री माळा, एक मोटी दूजी दूजी नान्ही रे । गुण गूंथ्या च्यारू तीर्थ ना, अव्रत रह गई कानी रे । चतुर विचार करीनै देखो।" सो आ अव्रत डावी कानी रही के जीमणी कानी रही ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-असंख्याता प्रदेशां मै इ अव्रत छै, असंख्याता प्रदेशां मै इ व्रत छ, गुण जूवौ जूवौ छै, व्रत सूं अव्रत न्यारी है, इण लेखै कानी कही। २०. तीन मिच्छामि दुक्कडं पाली मै सं० १८७५ हेमजी स्वामी गोचरी पधारतां रूपविजेजी संवेगी उपाश्रा नी बारी रै मूंहढे हेलौ पाड्यौ-हेमऋष ! आवौ, हेमऋष ! आवो, चरचा करां। ___ जद हेमजी स्वामी बैठा । संवेगियां री श्रद्धा रा लोक भेळा घणा थया। रूपविजे बोल्यो-महढो स्यानै अर्थे बांध्यौ ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-दया नै अर्थे । जद रूपविजै बोल्यौ-दया स्या नी ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-दया वायुकाय नी । रूप०-वायुकाय ना जीवां रा शरीर चोफर्शी के अठफर्शी ? जद हेमजी स्वामी बोल्या-अठफर्शी। रूप०-भाषा ना पुद्गल चौफर्शी के अठ फर्शी ? जद हेमजी स्वामी कह्यौ-भाषा ना पद्गल चौफर्शी। जद रूपविजै बोल्यो-चौफर्शी थी अठफर्शी किम हणावै ? जिम पूणी पड्या पाडी किम मरै । जद हेमजी स्वामी बोल्या-पूणी पड़यां पाडी न मरै, अनै सो मण नीं शिला पड़या तो पाडी मरै। ज्यू भाषा बोलतां अठफर्शी नवौ अचित्त वायरौ ऊठे तिण अठफर्शी नवा वायरा सूं वायु काय रा जीव हणाय। इम कह्यां रूपविजै नै जाब न आयो। . जद फेर बोल्यो-यूं जीव मरै तौ तीन जागां बांधौ। हेठे १ महढे ३ नाक ३ । हेम-छींक करै जठे पिण आडौ हाथ देणौ कह्यो ? छीए, जंभाइए, वायनिसग्गेणं ए तसुत्तरी मै पाठ कह्या ? के नहीं ? जद रूपविजै बोल्यो-कह्या तौ छै । इण चरचा मै पिण कष्ट थयो। जद रूपविजै फेर बोल्यौ जीव तौ मारचौ मरे नहीं, बाल्यौ बळे
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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