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________________ २४० भिक्खु दृष्टांत ३११. सराहना क्यों करते हैं ? जेतारण में धीरो पोकरणा था । टोडरमलजी ने उससे कहा- 'भीखणजी कहते हैं कि थोड़े दोष से साधुपन टूट जाता है। यदि इस प्रकार साधुपन टूट जाये, तो पार्श्वनाथ की दो सौ छह साध्वियां हाथ-पैर धोती थीं, आंखों में अंजन आंजती थीं, बच्चे-बच्चियों खिलाती थीं, वे भी मर कर इन्द्र की इन्द्राणियां हुई और एकावतारी ( एक जन्म के बाद मोक्ष जाने वाली ) हुईं । तब धीरजी पोकरणा ने कहा- 'पूज्यजी ! अपनी साध्वियों की आंखों में अंजन अंजाओ, हाथ-पैर धुलाओ, और बच्चों-बच्चियों को खिलाने की अनुमति दो, जिससे वे भी एकावतारी हो जाएं ।' तब टोडरमलजी ने कहा- 'रे मूर्ख ! हम ऐसा काम क्यों करेंगे ?' तब धीरजी बोला- 'यदि आप ऐसा काम नहीं करते हैं, तो उनकी सराहना क्यों करते हैं ?? ३१२. स्थापना क्यों करते हैं ? एक बार टोडरमलजी ने धीरजी पोकरणा से कहा- 'भीखणजी ने सूत्र के पाठ को उलट दिया । भगवती में कहा है कि साधु को अशुद्ध आहार देने से 'अल्प पाप और बहुत निर्जरा' होती है ।' तब धीरजी ने कहा - 'पूज्यजी ! आप मेरे घर गोचरी आएं, मेरे कटोरदान में लड्डू हैं, वह कटोरदान गेहूं के ढेर में रखा हुआ है । उसे बाहर निकाल कर आपको लड्डू का दान दूंगा । मुझे भी 'अल्प पाप और बहुत निर्जरा' होगी ।' तब टोडरमलजी ने कहा- 'रे मूर्ख ! हम क्यों लेंगे ?' तब धीरजी ने कहा - 'आप नहीं लेते हैं ?" हैं, तो फिर उसकी स्थापना क्यों करते उपसंहार इनमें से कुछ दृष्टांत स्वामीजी के मुख से सुने, कुछ दूसरों के पास सुने । उनके अनुसार ये हमने लिखाए । कुछ संक्षिप्त थे, उन्हें अनुमान और युक्ति के आधार पर विस्तृत किया और कुछ विस्तृत थे, उन्हें संक्षिप्त किया। इस संकलन कार्य में कोई विरुद्ध बात कही गई हो तथा असत्य का प्रयोग हुआ हो, आगे-पीछे या कोई विपरीत कही गई हो, तो उसके लिये मैं अपने दुष्कृत की आलोचना करता हूं । बूहा १. संवत् १९०३, कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी और रविवार के दिन । २. हेम, जीत आदि बारह साधु नाथद्वारा में चातुर्मासिक प्रवास कर रहे थे । ३. हेमराजजी स्वामी ने ये दृष्टांत लिखाए और युवाचार्य जीतमल ने ये लिखे । भिक्षु के दृष्टांत या संस्मरण आकर्षक और रस से परिपूर्ण हैं । ४. आचार्य भिक्षु मत्पत्तिकी बुद्धि (प्रतिभा) के धनी और गुणों के भंडार थे ! उनके ये दृष्टांत हितकर हैं और श्रोता को सुख देने वाले हैं ।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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