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________________ दृष्टांत : २९३ गोचरी नहीं करते ।” तब हेमजी स्वामी बोले - " आप आज्ञा दें, तो मैं जाऊं।" "1 'भले ही जाओ ।' तब स्वामीजी बोलेतब हेमजी स्वामी मोहनगढ में गोचरी करते-करते किसी एक घर में गोचरी के लिए गए और पूछा - "क्या आहार पानी बना हुआ है ? तब बहिन बोली - "रोटी नमक पर पड़ी है । " तब हेमजी स्वामी दूसरे माले पर गोचरी के लिए गए। उस घर की बहिन अंटसंट बोली, बहुत झगड़ा किया। आखिर रोटी दे दी। इसमें काफी समय लग गया । तब नीचे के घर वाली बहिन ने सोचा - ये साधु हमारे ही सम्प्रदाय के लगते हैं । हेमजी स्वामी वापस नीचे आए, तब वह बहिन बोली - "आप पधारें और आहार का दान लें । यह कहकर उसने दान देने के लिए रोटी हाथ में ली । " तब हेमजी स्वामी ने कहा - " बहिन ! तू कहती थी, रोटी नमक पर पड़ी है ।" तब वह बोली- - " मैंने आपको तेरापन्थी साधु जाना था; इसलिए वह बात कही ।" तब हेमजी बोले - "हम हैं तो तेरापन्थी ही । तुम्हारा मन हो तो दो ।" तब वह बड़ी मुश्किल से बिना मन बोली "लो।" इसके बाद हेमजी स्वामी अगले घर में गए । आहार- पानी के बारे में पूछा । तब वह बोली "मुझे तो तेरापन्थी को रोटी देने का त्याग है । तब हेमजी स्वामी बोले दे दो । तब उसने उठकर पानी का दान दिया । हेमजी स्वामी ने स्थान पर आकर सारे समाचार स्वामीजी को सुनाए । स्वामीजी सुन कर बहुत प्रसन्न हुए । "रोटी देने का त्याग है । तो पानी हो तो पानी का दान २६३. जैसा गुरु वैसा देव और धर्म गुरु का मूल्य कितना होता है, इस पर स्वामीजी ने तराजू की दण्डी का दृष्टांत दिया - " जैसे तराजू की दण्डी के तीन छिद्र होते हैं, बीच के छिद्र में यदि फर्क होता है तो तराजू का सन्तुलन बिगड़ जाता है, और बीच का सन्तुलन ठीक होता है तो उसका सन्तुलन ठीक हो जाता है। वैसे ही देव, गुरु और धर्म - इन तीनों के बीच में हैं । गुरु यदि गुरु अच्छे होते हैं, तो देव भी अच्छे होते हैं और वे अच्छे धर्मं को बताते हैं । और यदि 'गुरु खराब होते हैं तो देव में भी अन्तर ला देते हैं और धर्म में भी अन्तर लाते हैं- अपनी-अपनी दृष्टि का अन्तर आ जाता है । यदि गुरु ब्राह्मण होता है तो शिव को देव बताता है और धर्म बताता हैब्रह्मभोज । यदि गुरु भोपा होता है तो धर्मराज को देव बताता है और धर्म बताता हैभोपों को भोजन कराओ और दक्षिणा दो । यदि गुरु 'कामडिया' होता है तो रामदेवजी को देव बताता है और धर्म बताता
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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