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________________ २२२ भिक्खु दृष्टांत २६०. गृहस्थ के भरोसे न रहें सम्वत् १८५७ की घटना है। स्वामीजी ने पुर में चतुर्मास किया। यह पता चला कि यहां फौजें आ रही हैं ।' तब स्वामीजी ने वहां से विहार करने की बात सोची। तब भाई बोले- "आप विहार क्यों कर रहे हैं ?" तब स्वामीजी बोले-"पहले यहां भमुक सम्प्रदाय के साधुओं ने चतुर्मास किया था, उस समय फौज के आने से गांव के कुछ लोग वहां से चले गए । तब उन साधुओं ने कहा-'हम तो चतुर्मास में विहार नहीं करेंगे।' इस आग्रह से उन्होंने विहार नहीं किया। बाद में फौज आई। वे साधु "नागोऱ्या री गवाड़" में चले गए। फौजियों ने उन्हें पकड़ कर कहा-"धन कहां है, बताभो ?" वे बोले नहीं, तब उनके नाक में मिचों का धुआं दिया और उनके मुंह पर मिर्गों का थेला बांध दिया। इस प्रकार बहुत कष्ट दिया। इस घटना को ध्यान में रख कर यहां से विहार करने का भाव है। यहां रहने का भाव नहीं है।" ___ तब भाई बोले-"आप विहार न करें। (यदि ऐसी ही स्थिति बनी और हमें जाना पड़ा तो) हम आपको अच्छी तरह ले जाएंगे, हम आपको यहा छोड़कर नहीं जाएंगे।" तब स्वामीजी वहां ठहर गए। बाद में फौज की हलचल बढी । तब भाई तो रातोंरात इधर-उधर भाग गए। सवेरे स्वामीजी भी विहार कर गुरला गांव पधार गए। कुछ भाई भी वहां आए। स्वामीजी ने उनसे कहा-"तुम कहते थे, हम साथ में चलेंगे। पर तुम तो रातोंरात पहले ही भाग कर आ गए।" ___तब भाई बोले- "हम पहाड़ी पर खड़े देख रहे थे। वे स्वामीजी पधार रहे हैं, वे स्वामीजी पधार रहे हैं।" तब स्वामीजी बोले-“दूर खड़े होकर देखने से क्या होता ? तुम कहते थे 'हम साथ रहेंगे।' सो साथ में तो रहे नहीं । गृहस्थ का क्या भरोसा ? "गृहस्थ के भरोसे नहीं रहना चाहिए।" २६१. मैं मार्ग जानता हूं स्वामीजी नींमली से विहार कर चेलावास पधार रहे थे, तब वे मार्ग पूछने लगे। सव जैचन्दजी श्रावक बोला--"स्वामीनाथ ! मार्ग मैं जानता हूं। आप सुखे-सुखे पधारें।" आगे वह स्वामीजी को हरियाली में ले गया। मार्ग बन्द हो गया। तब स्वामीजी ने जैचन्दजी को बहुत उलाहना दिया-"तू कहता था कि मैं मार्ग जानता हूं।" १. उस समय में फौजें-छोटी-छोटी टुकड़ियां लूट-खसोट के लिए गांवों में घूमा करती थीं। छोटे-छोटे राज्यों में परस्पर संघर्ष चलता रहता था। एक-दूसरे के प्रदेश में वे घुस जाते और लूट-खसोट करते।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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