SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दृष्टांत : २३४-२३८ २१३ इसी प्रकार जो भगवान के साधु कहलाते हैं और विशेष कारण की स्थिति में अशुद्ध आहार देने पर अल्प पाप और बहुत निर्जरा बतलाते हैं, अशुद्ध आहार देने की स्थापना करते हैं, वे इहलोक और परलोक में बुरे दिखते हैं ।" . २३४. फिर मार्ग क्या पहिचाना ? अल्प कर्म वाले जीव झूठे गुरु को छोड़ सच्चे गुरु को स्वीकार करते हैं, तब अन्य संप्रदाय के साधु और उनके श्रावक कहते हैं- "पाली में विजयचंद पटवा लोगों को रुपए देकर श्रावक बनाता है।" तब स्वामीजी बोले- "तुम्हारे श्रावक रुपयों के बल पर अपना धर्म बदल लेते हैं, तब उन्होंने तुम्हारा मार्ग क्या पहिचाना ? तुम कहते हो कि वे रुपयों के बल पर दूसरे धर्म में चले जाते हैं तो शेष लोग भी रुपयों के बल पर दूसरे धर्म में चले जाएंगे। इससे लगता है, तुम्हारे श्रावकों ने तुम्हारे मार्ग को नहीं पहिचाना। २३५. वर्तमान काल में मौन . "कोई सावद्य दान देता है, लेता है, उस समय उस विषय में साधु को उसके लाभा-लाभ के बारे में पूछने पर उसे वर्तमान काल में मौन रहना चाहिए।"- इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"कुश के दोनों छोर आग से गरम हो उठते हैं और वह बीच में ठंडा रहता है । इधर से पकड़ने पर हाथ जलते हैं और दूसरे छोर पर पकड़ने पर भी हाथ जलते हैं, पर उसे बीच में से पकड़ने पर हाथ नहीं जलते हैं । ___ इसी प्रकार वर्तमान काल में सावद्य दान के विषय में पुण्य कहने से छह काय के जीवों की हिंसा लगती है और पाप कहने से दान देने वालों के अंतराय होता है, इसलिए वर्तमान काल में मौन रखना चाहिए।" २३६. हरियाली खाने के लिए बनाई है कोई कहता है-- भगवान् ने हरियाली खाने के लिए बनाई है । तब स्वामीजी बोले---"तुम्हारे कथनानुसार तुम बाघ के आने पर क्यों भाग जाते हो? तुझे भी तो भगवान् ने बाघ का भक्ष्य बनाया है ? तुम्हारे मतानुसार तुझे बाघ के खाने के लिए बनाया है।" तब वह बोला- "मेरा जीव छटपटाता है और दुःख पाता है।" "सब जीवों के बारे में तू ऐसे ही सोच । वे भी मारे जाने पर दुःख का अनुभव करते हैं।" २३७. काचरी के बिना कौन-सा विवाह रुकेगा ? हेमजी स्वामी दीक्षा लेने तैयार हुए, तब किसी गृहस्थ ने स्वामीजी से कहा"हेमजी दीक्षा लेने को तैयार हुए हैं, पर उनमें तम्बाकू का व्यसन है।" तब स्वामीजी बोले-“काचरों के बिना कौन-सा विवाह रुक जाएगा ?" __२३८. जन्म व्यर्थ हो गया पुर की घटना है। छाजू खाबिया स्वामीजी के पास आकर "आबूगढ तीरथ
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy