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________________ भिक्षु दृष्टांत २२१. यह भी धर्म होगा अमुक सम्प्रदाय के साधु कहते हैं-"किसी को रुपया देने से उन रुपयों पर होने वाली ममता मिट जाती है, वह धर्म है।" तब स्वामीजी बोले-"किसी किसान ने बीस हलों या बीस बीघों की खेती की। उसने दस हलों या दस बीघों की खेती किसी ब्राह्मण को दे दी। तो उन साधुओं के अनुसार उस किसान की उस खेती पर से ममता मिट गई । उनके अनुसार यह भी धर्म होगा।" २२२. आपके भी गले उतर गई पाली की घटना है। स्वामीजी शौचार्थ जंगल में गए तब हीरजी यति उनके साथ-साथ गए । अंट-संट प्रश्न पूछे । उनकी मान्यता थी-(१) हिंसा में धर्म होता है । (२) सम्यक् दृष्टि को पाप नहीं लगता। (३) सब जगत् के सब जीवों को मार देने पर भी संसार-भ्रमण का एक क्षण भी नहीं बढता। (४) सब जीवों की दया करने पर भी संसार-भ्रमण का एक क्षण भी नहीं घटता। (५) जैसी नियति होती है, वैसा ही होता है-क्रिया करने की आवश्यकता नहीं, केवली ने देखा है, उस समय मोक्ष में चला जाएगा। इत्यादि विरुद्ध मान्यताएं उन्होंने स्वामीजी के सामने रखी। तब स्वामीजी ने उनका उत्तर नहीं दिया। रास्ते चलते साधु बोल नहीं सकते; इसलिए स्वामीजी मौन रहे। तब हीरजी बोले-"मैंने जो कहा, वे मान्यताएं, आपके भी गले उतर गई, ऐसा लगता है, इसीलिए आपने मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया।" तब स्वामीजी बोले-"कोई सूअर मैला खा रहा था। कोई साहूकार शौच से निवृत्त हो रहा था। सहज ही उसकी दृष्टि उस सूअर पर पड़ी। तब वह सूअर बोला -लगता है साहजी का मन भी मैला खाने के लिए ललचा गया है।" ____ "इसी प्रकार तुम भी कहते हो । किन्तु हम तुम्हारी इस अशुद्ध मान्यता को मैले के समान मानते हैं। इसीलिए उसकी मन से भी बांछा नहीं करते ।" २२३. अशुद्ध बर्तन में घी कौन डाले ? एक दिन हीरजी ने स्वामीजी से विपरीत प्रश्न पूछे और बोले-"मुझे इनका उत्तर दें।" तब स्वामीजी बोले-"कोई मल से भरा हुआ बर्तन ले आया और बोला'इसमें मुझे घी तोल दो।' पर अशुद्ध बर्तन में घी कौन डालेगा? ___ "इसी प्रकार जो अशुद्ध, बुरा बौर विपरीत हो, उसे शुद्ध उत्तर देने में भी कोई गुण नहीं होता। इसलिए अभी हम तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर नहीं देंगे।" २२४. दूसरे पर रंग तब चढ़ता है ___ "वैरागी की वाणी सुनने से वैराग्य उत्पन्न होता है'-इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया-"कसूंबा स्वयं गलता है, तब वह वस्त्रों को रंग सकता है। कसूबा की गांठ बांध देने पर भी उसका वस्त्र पर रंग नहीं चढ़ता, क्योंकि वह स्वयं घुला हुआ
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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