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________________ १९६ भिक्खु दष्टांत फिर भगजी ने बड़ी बहिन की स्वीकृति लेकर दीक्षा ग्रहण की। इस पर उन चचेरे भाइयों ने बहुत विग्रह खड़ा कर दिया। स्वामीजी के सम्मुख बहुत दिनों तक वे झगड़ा करते रहे, पर स्वामीजी ने उसकी कोई परवाह नहीं की। एक दिन स्वामीजी ने भगजी से पूछा- "तुझे वे जबरदस्ती वापस घर में ले जाए तो तू क्या करेगा? तब भगजी बोले--- "यदि ने मुझे घर में ले जाए तो मुझे चारों आहार करने का त्याग है। ____सं० १८६० का चतुर्मास स्वामीजी ने सिरियारी में किया। उस चतुर्मास में भगजी के चचेरे भाइयों ने फिर बहुत विग्रह खड़ा किया। पर स्वामीजी न्याय-मार्ग पर थे, इसलिए उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। १६१. मर्यादा का निर्माण देसूरी से दीक्षित साधु नाथूजी खाने के बहुत लोलुप थे। उसे ध्यान में रख कर स्वामीजी ने साधुओं के लिए घृत, दूध, दही, चीनी और "कडाई विगय" (मिठाई तथा तली हुई चीजे), खाने की मर्यादा की। यह घटना सम्वत् १८५९ की है। १९२. संघीय सम्बन्ध नहीं रहेगा स्वामीजी ने वीरभाणजी से कहा-"तुम्हें पन्ना को दीक्षा देने की आज्ञा नहीं है । यदि तुमने उसे दीक्षा दी तो अपने परस्पर संघीय सम्बन्ध नहीं रहेगा। इस पर भी वीरभाणजी ने पन्ना को दीक्षा दी। तब स्वामीजी ने वीरभाणजी का संघ से सम्बन्धविच्छेद कर दिया । तब वीरभाणजी ने "इंद्रियां सावध है"- इस विपरीत मान्यता का प्रतिपादन शुरू कर दिया। १९३. देख-देख दीक्षा देना स्वामीजी ने ओटा सुनार और वीरां कुम्हारी को दीक्षित किया। उनकी प्रवृत्तियां मुनि-जीवन के अनुकूल नहीं रहीं। इसलिये महाजन के सिवाय दूसरों को दीक्षित करने की स्वामीजी के मन में रुचि नहीं रही। १६४. शंका का समाधान टीकम डोसी अनेक विषयों में संदिग्ध हो गए। वह लगभग उनतीस पन्ने लिख कर लाया । वह चर्चा करने लगा। बहुत बोलता था। तब स्वामीजी ने उसके पन्ने पढ उत्तर लिख दिये और वे उसे पढा दिए । लगभग २६ पन्नों में जो जिज्ञासाएं लिखी हुई थीं, उनका तो समाधान कर दिया। तब उसकी आंखों में आंसू की धार बहने लगी। वह गद्-गद् स्वर में बोला-'स्वामीजी ! यदि आप नहीं होते, तो मेरी क्या गति होती? आप तीर्थकर, केवली समान हैं।' उसने इस प्रकार बहुत गुणानुवाद किया। स्वामीजी की रचनाओं को सुन वह बहुत प्रसन्न हुआ। वह बोला-'ये रचनाएं क्या हैं ! ये तो सूत्रों की नियुक्तियां हैं।' वह लंबे समय तक उपासना कर वापस अपने प्रदेश कन्छ चला गया। . कच्छ में जाने के बाद फिर उसके मन में सन्देह के बादल उमड़ आए । तब उसने आजीवन चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान कर अनशन कर दिया। उसने कहा-'अब
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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