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________________ १९० भिक्खु दृष्टांत तब हेमजी स्वामी बोले-भले पधारे । स्वामीजी बोले - साधुपन लूंगा-लूंगा-इस प्रकार ललचाते हुए तुझे लगभग तीन वर्ष हो गए । अब तू पक्की बात कर । तब हेमजी स्वामी बोले--स्वामीनाथ ! साधुपन स्वीकार करने का विचार पक्का स्वामीजी बोले-मेरे जीते जी लेगा या मरने के बाद? यह बात सुनी, उन्हें बहुत अप्रिय लगी। स्वामीनाथ ! आप ऐसी बात करते हैं । यदि आपको शंका हो तो मुझे नौ वर्ष के बाद अब्रह्मचयं सेवन का त्याग करा दें। स्वामीजी बोले-तुझे त्याग है, इस प्रकार तत्काल त्याग करा दिए। त्याग करा कर बोले-तुमने ब्याह करने के लिए नौ वर्ष रखे हैं न ? हां, स्वामीनाथ! ___ तब स्वामीजी बोले-एक वर्ष तो ब्याह करने में लग जाएगा। शेष आठ वर्ष बचे । उसमें भी स्त्री एक वर्ष तक अपने पीहर में रहेगी। शेष बचे सात वर्ष । उसमें भी दिन में मब्रह्मचर्य सेवन का त्याग है। शेष बचे साढ़े तीन वर्ष । पांचों तिथियों में अब्रह्मचर्य सेवन का तुझे त्याग है। शेष बचे लगभग दो वर्ष चार महीने । इस प्रकार काल को समेटते-समेटते पहरों और घड़ियों के हिसाब में आए। तब अब्रह्मचर्य सेवन का काल बचा लगभग छह मास। स्वामीजी ने एक बात और कही-ब्याह के बाद एक या दो पुत्र और पुत्री को जन्म देकर पत्नी मर जाती है तब सारी आपदा स्वयं के गले पर आ जाती है, दुःखी हो जाता है । फिर साधुपन स्वीकार करना कठिन हो जाता है । यह कहकर स्वामीजी ने हेमजी स्वामी को फिर उपदेश दिया-तू यावज्जीवन ब्रह्मचर्य को स्वीकार कर । हाथ जोड़ । ___ यह बात चल रही थी इतने में खेतसीजी स्वामी बोले-जोड़, जोड़, हाथ जोड़, स्वामीजी कह रहे हैं । तब हेमजी स्वामी ने हाथ जोड़ लिए। ___ तब स्वामीजी ने पूछा-क्या तुम्हें ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार करा दूं ? स्वामीजी ने इसे दोहराया। तब हेमजी स्वामी बोले-स्वीकार करा दें। तब स्वामीजी ने पंच पद की साक्षी से यावज्जीवन अब्रह्मचर्य सेवन का त्याग करा दिया । हेमजी स्वामी बोले-अब आप सिरियारी में जल्दी पधारना । तब स्वामीजी बोले-अभी हम वहां साध्वी हीरांजी को भेज रहे हैं मो साधु का प्रतिक्रमण तू सीख लेना। यह कह स्वामीजी नीमली में आ गए। पीछे की सारी बात उन्होंने मार्ग में खड़े-खड़े की थी। हेमजी स्वामी के पास मिठाई थी। स्वामीजी ने, उनके अनुरोध पर, उसे स्वीकार किया। ० आपने भारी काम किया नीमली की घटना है। स्वामीजी ने भारमलजी से कहा-अब तुम्हारे लिए
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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