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________________ १७४ भिक्खु दृष्टांत जीवन आपका दिया हुआ है। माता-पिता बोले - तुमने हमें पुत्र दिया है । बहिनों ने कहा – तुमने हमें भाई दिया है। स्त्री प्रसन्न होकर बोली- मेरी चूड़ियां और चुनरी अमर रहेगी, यह तुम्हारा ही प्रताप है । सगे-संबंधी भी राजी होकर बोले- तुमने बहुत अच्छा काम किया । लाख रूपये देने से भी यह उपकार बड़ा है। किन्तु यह उपकार संसार का है । ra मोक्ष का उपकार बताया जाता है किसी को जंगल में सर्प काट गया। वहां साधु आ पहुंचे। वह बोला- मुझे सर्प काट गया इसलिए आप झाड़ा दें । तब साधु बोले- हम झाड़ा देना जानते तो हैं पर दे नहीं सकते । तब वह बोला- मुझे दवा बताओ । साधु बोले- हम दवा जानते तो हैं पर बता नहीं सकते । तब वह बोला- - तुम ऐसे ही मुंह बांध कर फिरते हो या तुम्हारे में कुछ करामात भी है ? तब साधु बोले- हमारे में ऐसी करामात है कि तुम यदि हमारी बात मानो तो तुम्हें किसी भी जन्म में सांप नहीं काटेगा । तब वह बोला- वह क्या है मुझे बताओ । तब साधु बोले- तुम विकल्प सहित अनशन कर दो-इस उपसर्ग से बच जाऊंगा तो भोजन करूंगा अन्यथा अन्न और जल का त्याग करूंगा । इस प्रकार उसे सविकल्प अनशन कराया, नमस्कार मंत्र सिखाया, अर्हत् - सिद्ध- साधु और धर्म इन चारों शरणों से उसे सनाथ बनाया, उसकी भाव धारा को पवित्र बनाया। वह वहां से मर कर देवता हो गया, मोक्षगामी बन गया । यह मोक्ष का उपकार है । १३०. साधु किसे सराहेंगे ? संसार और मोक्ष के मार्ग पर स्वामीजी ने एक और दृष्टांत दिया - एक साहूकार के दो स्त्रियां थीं। एक ने रोने का त्याग कर दिया । वह धर्म के रहस्य को जानती थी। दूसरी धर्म के मर्म को नहीं समझती थी। कुछ समय बाद उसका पति परदेश में काल कर गया। जो स्त्री धर्म के मर्म को नहीं समझती थी, वह पति के देहावसान का समाचार सुन कर रोती है, विलपती है और जो स्त्री धर्म के मर्म को समझती है वह आंसू नहीं बहाती किंतु समता धार कर बैठी है। बहुत स्त्री-पुरुष इकट्ठ हुए। वे सब रोने वाली की प्रशंसा करते हैं - यह धन्य है, पतिव्रता है। और जो नहीं रोती उसकी निन्दा करते हैं - यह पापिनी तो चाहती थी कि पति मर जाए। इसकी आखों में मांसू भी नहीं हैं । १३१. पगड़ी कहां से आई ? कुछ लोग कहते हैं -- भगवान् की आज्ञा के बाहर भी धर्म होता है । तब स्वामीजी बोले- आज्ञा में धर्म है- यह तो भगवान् के द्वारा प्रतिपादित है । आज्ञा के बाहर धर्म है - यह किसके द्वारा प्रतिपादित है ? जैसे किसी ने पूछा- तुम्हारे सिर पर पगड़ी है, वह कहां से आई ? तब जो साहूकार होता है वह तो उसकी उत्पत्ति का मूल स्रोत बता देता है। वह साक्षी
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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