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________________ दृष्टांत : १०६-१०८ १६५ १०६. गहना कहां से आएगा? स्वामीजी घर में थे तब उनके गांव कंटालिया में कोई चोर किसी का गहना चुराकर ले गया। तब बोरनदी गांव से एक अंधे कुम्हार को बुलाया। उसके शरीर में देवता आता है, ऐसा कहा जाता था, इस दृष्टि से उसे चोरी गए गहने का पता लगाने के लिए बुलाया। उस कुम्हार ने स्वामीजी से पूछा-भीखणजी ! यहां किस पर बहम किया जाता तब स्वामीजी ने उसकी ठगाई को प्रगट करने के लिए कहा—बहम तो मजनूं पर किया जा रहा है। रात का समय हुआ। अंधे कुम्हार ने अपने शरीर में देवता का प्रवेश कराया। बहुत लोगों के सामने वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-डाल दे रे, डाल दे। लोग बोले-चोर का नाम बताओ। तब वह बोला --ओ ! ओ ! मजनूं रे मजनूं । गहना मजनूं ने लिया है। वहां एक अतीत (संन्यासी) बैठा था । वह अपना घोटा लेकर उठा और बोलामजनूं तो मेरे बकरे का नाम है । उस पर तुम चोरी का आरोप लगाते हो ? तब लोगों ने जान लिया, यह ठगी है। स्वामीजी ने लोगों से कहा -तुम आंख वालों ने तो गहना खोया और अंधे से निकलवाना चाहते हो, तब वह गहना कहां से आएगा? १०७. तभी तो उससे मुक्ति मिलेगी भीखणजी स्वामी घर में थे तब उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ। तब उन्होंने कर का ओसामन तांबे के लोटे में डाल एक-दूसरे पर रखे हुए बर्तनों की पंक्ति में रखा। बहत समय बाद उसे पीया तो बहुत कष्ट हुआ। तब उन्होंने सोचा, साधुपन बहुत कठिन है । फिर सोचा, ऐसा कठिन है तभी तो उससे मुक्ति मिलेगी। नई दीक्षा स्वीकारने के बाद सं. १८४९ के लगभग स्वामीजी ने हेमजी स्वामी से कहा हमने कष्ट की बात जानकर साधुपन स्वीकार किया था, पर वैसा (कैर का ओसामन) जल पीने का काम कभी नहीं पड़ा। तब हेमजी स्वामी ने कहा -- ऐसे वैराग्य से आपने घर छोड़ा तब आप अमुक संप्रदाय में कैसे रहते ? १०८. दो घड़ी सांस रोका जा सकता है स्वामीजी आचार्य रुघनाथजी के संप्रदाय से अलग हुए तब उन्होंने कहाभीखणजी अभी पांचवां अर है । कोई दो घड़ी भी शुद्ध साधुपन पालता है तो वह केवली हो जाता है। तब स्वामीजी बोले-यदि ऐसे ही केवलज्ञान उत्पन्न होता हो तो दो घड़ी तो नाक को बन्द करके भी बैठे रह सकते हैं । और प्रभवस्वामी आदि पांचवें अर में हुए। क्या उन्होंने शुद्ध साधुपन नहीं पाला ?
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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