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________________ १५६ भक्खु तब आचार्य रुघनाथजी के श्रावक स्वामीजी के श्रावकों से कहने लगे " तुम्हारे गुरु मेवाड़ में हैं सो प्रार्थना कर उन्हें यहां बुलाओ ।" कुछ दिनों बाद स्वामीजी मेवाड़ से मारवाड़ पधारे। पाली में आचार्य रुघनाथजी कहा है, 'आप खंतिविजयजी से चर्चा बहुत करते हैं - मैंने ढूंढियों के मुंह में भी दांत नहीं मिला। एक सांवरे रंग प्रकार वह अवांछनीय शब्दों का प्रयोग करता के श्रावक स्वामीजी से कहने लगे - "पूज्यजी ने कर उन्हे निरुत्तर करें। वे उल्टी- सुल्टी बातें अंगुली डाल कर देख लिया है, पर मुझे कहीं वाला भीखन बाकी बचा है।' है ।" इस निक्षेपों की चर्चा कुछ दिनों बाद स्वामीजी विहार करते-करते काफरला गांव ( मारवाड़) में पधारे। खंतिविजयजी भी पीपाड़ के अनेक श्रावकों के साथ मंदिर की प्रतिष्ठा के लिए वहां आए । उन्हें अनेक लोगों ने कहा--' "आप भीखणजी से चर्चा करें ।" एक दिन कुम्हारों के मोहल्ले में स्वामीजी जा रहे थे। सामने वे भी आ गए। उन्होंने स्वामीजी से पूछा"तुम्हारा नाम क्या ? " / स्वामीजी बोले- "मेरा नाम भीखण ।" खंतिविजयजी बोले "जो तेरापंथी भीखणजी हैं, वे तुम ही हो ? " तब स्वामीजी बोले -"हां, मैं वही हूं ।" तब खंतिविजयजी बोले - " तुमसे निक्षेपों की चर्चा करनी है । " स्वामीजी बोले - "निक्षेप कितने हैं ?" वे बोले - " निक्षेप चार हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ।" स्वामीजी ने पूछा - " इनमें से वंदना - भक्ति किन निक्षेपों की करनी चाहिए है" खंति विजयजी बोले -- 'चारों ही निक्षेपों की वंदना - भक्ति करनी चाहिए।" भी वंदना - पूजा करते हैं। शेष तीन स्वामीजी बोले- " एक भाव निक्षेप की हम निक्षेपों की चर्चा रही। इनमें पहला नाम निक्षेप रख दिया। उसे तुम वंदना करते हो या नहीं ?" है। किसी कुम्हार का नाम भगवान तब खंतिबिजयजी बोले - "उसको क्या वंदना करें ? उसमें प्रभु के गुण नहीं है।" स्वामीजी बोले - " गुण वाले को तो हम भी वंदना करते हैं ।" इसका उत्तर देने में वे सकपका गए । फिर स्वामीजी ने स्थापना निक्षेप के विषय में चर्चा शुरू की " रत्नों की प्रतिमा हो तो उसको वंदना करते हो या नहीं ?" वे बोले - " वंदना करते हैं ।" फिर पूछा - "सोने की प्रतिमा हो तो ?" वे बोले - " वंदना करते हैं।" "चांदी की प्रतिमा हो तो ?"
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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