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________________ १४६ तब उन्होंने कहा - " टूट जाता है । स्वामीजी ने फिर पूछा - " पांचवे अर में "तेला कितने दिनों का होता है ? तब उन्होंने कहा - "तीन दिनों का होता है । स्वामीजी ने पूछा - ' इस समय एक भूंगड़ा खा लेने पर तेला रहता है या टूट जाता है ? तब उन्होंने कहा - "टूट जाता है । तब स्वामीजी बोले – 'तब तुम पंचम काल के सिर पर क्यों दोष मढ़ते हो ? एक मूंगड़ा खा लेने पर तेला टूट जाता है, तो दोष की स्थापना करने पर साधुपन कैसे रहेगा ? भिक्खु दृष्टांत ६७. त्याग को तोड़ने वाला कौन और पालने वाला कौन ? कुछ लोग कहते हैं – “ये (शिथिलाचारी साधु) दोषों का सेवन करते हैं, फिर भी अपने से तो अच्छे हैं । ये सजीव जल नहीं पीते, स्त्री का सेवन नहीं करते । इस पर स्वामीजी ने दृष्टांत दिया - एक व्यक्ति ने तीन एकासन किए। प्रत्येक दिन उसने छह-छह रोटियां खाईं । एक व्यक्ति ने तेला (तीन दिन का उपवास) किया और प्रत्येक दिन आधी-आधी रोटी खाई। इन दोनों में त्याग को तोडने वाला कौन और पालने वाला कौन ? तेला करने वाले ने त्याग को तोड़ा और एकासन करने वाले ने त्याग का पूरा पालन किया । इसी प्रकार गृहस्थ स्वीकार किए हुए व्रतों का सम्यक् पालन करता है, वह एकासन करने वाले जैसा है और जो साधुपन को स्वीकार कर दोषों का सेवन करता है वह तो तेले में रोटी खाने वाले जैसा है । ६८. जन्मपत्री तो बाद में बनती है पाली की घटना है। लखजी बीकानेर निमित्त इक्कावन रुपये देने की घोषणा की। उन लकड़ी का फाटक लगा दिया। इसमें विशेष आरंभ कहा - " इसमें कौन-सा आरम्भ है । कोई विशेष आरंभ नहीं हुआ ।" - मरणासन्न था, तब उसने स्थानक के रुपयों से एक जगह खरीद कर वहां नहीं हुआ तब किसी ने स्वामीजी से तब स्वामीजी ने कहा- "कोई जन्मता है, उस समय उसके जन्म का समय अंकित किया जाता है, जन्मपत्री और वर्षफल तो बाद में बनते हैं । वैसे ही इस स्थानक की स्थापना तो हो गई है, लम्बे आयुष्य वाला देखेगा, इस पर भवन खड़ा हो रहा है।' फिर कुछ वर्षों बाद उस स्थान में भवन खड़ा होने लगा, तब टेकचंद पोरवाल ने कहा- भीखणजी कहते थे - यहां भवन खड़ा होगा सो अब हो ही गया । ६६. फूलझड़ी से क्या होगा ? सामने वालों को समझाने के लिए कड़े दृष्टांत का प्रयोग किया जाता । तब किसी ने स्वामीजी से कहा- - " आप कड़े दृष्टांत का प्रयोग करते हो ।" तब स्वामीजी ने कहा-“रोग तो गंभीर बात का हुआ और कहता है, इसे
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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