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________________ ११८ भिक्छ दृष्टांत ३११. न करावौ तौ सरावो क्यूं ? जैतारण मै धीरो पोखरणौ तिणनै टोडरमलजी कह्यो-भीखणजी कहै थोड़ा दोष सं साधपणौ भागै। जो यूं साधपणौ भागै तौ पार्श्वनाथजी री २०६ आर्यां हाथ पग धोया, काजळ घाल्या, डावरा डावरी रमाया ते पिण मरनै इन्द्र नीं इंद्राणियां हुई अनै एकावतारी हुई। __जद धीरजी पोखरण कह्यौ-पूज्यजी, आपां री आर्यां रै काजळ घलावौ हाथ-पग धौवावौ, डावरा डावरी रमावा री आज्ञा दौ । सो ए पिण एकावतारी होय जावै। जद टोडरमलजी कह्यौ--रे मूरख, म्हे इसो काम क्यांन करां। जद धीरजी कह्यौ–न करावौ तौ उणां नै सरावौ क्यूं । ३१२. थाप क्यं करौ? फेर टोडरमलजी धीरे पोखरण नै कह्यौ-भीखणजी सूत्र नौ पाठ उथाप्यौ । साधु नै असूझतौ दोयां अल्प पाप बहुत निर्जरा भगवती मै कह्यौ जद धीरजी कह्यौ-पूज्यजी, आप गोचरी पधारया म्हारै, कटोरदान मै लाडू है । ते कटोरदान गोहां मै है सो बारे काढ वहिराय देसू । म्हारे ई अल्प पाप बहुत निर्जरा हुसी। जद टोडरमलजी कह्यौ-रे मूरख, म्हे क्यां नै ल्यां। जद धीरजी कह्यौ-न ल्यौ तौ थाप क्यूं करौ ? उपसंहार ए दृष्टांत केयक तौ स्वामीजी रे मुंढे सुण्यां । केयक और जागां पिण सुण्यां । तिण अनुसारे मंड़ाया, कोई संक्षेप हुँतो तिणनें उनमान न्याय जाणनै वधारयौ । विस्तार जाणनै संकोच्यो। तिण मै कोई विरुद्ध आयौ हुवै तथा झूठ लागौ हुवै आघौ पाछौ विपरीत कह्यौ हुवै तौ "मिच्छामि दुक्कडं।" दहा . संवत उगणीसे तीए, कार्तिक मास मझार । सुदि पख तेरस तिथ भली, सूर्यवार श्रीकार १ हेम जीत ऋष आदि दे, द्वादश संत दिपंत । श्रीजीद्वारा शैहर मै, कोयौ चौमासौ धर खंत २ हेम लिखाया हर्ष सूं, लिख्या जीत धर खंत । सरस रसै करो सोभता, भीक्खू नां दृष्टंत ३ उत्पतिया बुद्धि आगला, भीक्खू गुण भंडार । हितकारी दृष्टंत तसु, सांभळतां सुखकार ४
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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