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________________ भिक्खु दृष्ट साची श्रद्धा री रहिस बैठी तौ पिण आगला सेंहदा कुगुरु त्यांरौ संग छोड़े नहीं । १०४ २७२. हिंसा रा कामी सं० १८५५ पाली में हेमजी स्वामी टीकमजी सूं चरचा करतां एक मेसरी बोल्यो – सर्प ने च्यार पइसा देई काळबेल्या कनां थी छुड़ायौ तिण रौ कांई थयौ ? जद टीकमजी बोल्यौ - चोखौ धर्म थयौ । जद ऊ मेसरी बोल्यो - ते सर्प पाधरो ऊंदरां ना बिल मा गयौ । जद टीकमजी बोल्यो - मांहै अंदरौ हुसी नहीं तौ । ए बात हेमजी स्वामी स्वामीजी ने आय कही । जद स्वामीजी बोल्या - किणहि कागला नै गोळी बाही । कागलौ उड़ तौ कागला रौ आउषौ ऊभौ । पिण गोली वावणवाळा नै तौ पाप लाग चूक | ज्यूं साप छोडायौ ते साप उंदरां ना बिल माहै गयौ । माहै ऊंदरौ नहीं तौ ऊंदरा माथे भाग । पिण सर्प नै छोड़ावण वाळौ तौ हिंसा रौ कामी ठहर चूकौ । भीखणी स्वामी हेमजी स्वामी ने कह्यौ इसौ जाब देणौ । २७३. बखांण सीख हेमजी स्वामी दिख्या लेइ दसवैकालिक सीख्या । पछै उत्तराध्ययन सीखवा लागा । 'जद स्वामीजी बोल्या - बखांण सीख । कंठकला है तिण सूं । मुदै उपगार तो बखाण रौ है । मोटा पुरसा रै इसी उपगार नीं नीत । ३७४. बखाण थोड़ा हेमजी स्वामी ने भारमलजी स्वामी कह्यौ -म्हे टोळा वाळा माहै थी नीकल्या | जद केतला एक वर्षां तांई चौमासा मै अंजणा देवकी रौ वखाण तीन-तीन बार बांचता । बखाण थोड़ा तिण कारण । २७५. नदी ₹ दो तीरां पर सं० १८२४ भीखणजी स्वामी तो चौमासौ कंटालीयै कीधौ । भारमल जी स्वामी नै बगड़ी करायौ । बीच में नदी वहै सो मोटापुरुषां पहिला कहि राख्यौ तिण सं नदी री ऊली तीर तौ स्वामीजी पधारता अनै पैली तीर • भारमलजी स्वामी पधारता । माहोमाहि वातां कर हेतु युक्ति सीख मति
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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