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________________ दृष्टांत : २०१-२०२ ७९ जद स्वामीजी बोल्या - पांणी छ काया माहै छ के बारे ? जद बोल्यो - है - है है लिखजो मती - लिखजो मती । इम कहि कष्ट होयने चालतो रह्यौ । २०१. थे पूछ्यौ सो प्रश्न संभाळौ भीलौड़े स्वामीजी विराज्या तिहां भेषधाऱ्यां रौ श्रावक आय प्रश्न पूछ्यौ - भीखणजी ! किणहि श्रावक सर्व पाप रा त्याग किया तिणनें आहार पण बहियां कांई हुवै ? जद स्वामीजी बोल्या - धर्म हुवै । जद उण कह्यौ - थांरे तौ श्रावक नै दीयां पाप री श्रद्धा है, थे धर्म क्यूं कौ जद स्वामीजी बोल्या - थे पूछ्यौ सो प्रश्न संभाळी । श्रावक सर्व पाप रा त्याग किया, जद ते श्रावक रौ साध ईज थयौ । ते साध नै दीयां धर्म ईज छै । २०२. तीन घर वधावणा स्वामीजी बाईसटोला माहि थी नीकली नवौ साधपणौ पचखवाने त्यार था | जद कनै साध था ज्यांरी प्रकृति देखी। भारमलजी स्वामी रौ पिता किश्नौजी ज्यांरी प्रकृति कडली । आहार वधतौ मंगावै । अधिकाइ री रोटी उत्तरती लै नहीं । चोखी न दै जद कजीयौ करें । 1 जद भीलौड़ा में भारमलजी स्वामी नै कह्यौ -- थांरो पिता तौ साधपणा लायक नहीं सो परौ छोड़स्यां । थांरो कांई मन है ? जद भारमलजी स्वामी कह्यौ - म्हारै तौ आप सूं काम है । आपरी इच्छा आवै ज्यूं कीजै । पछै किश्नौजी ने स्वामीजी कह्यौ थारै म्हारै आहार पांणी कोइ नहीं । इम निसुणी किश्नौजी बोल्यो – म्हारा बेटा नै ले जासूं । जद स्वामीजी बोल्या -ऊ न आवै, आवै तौ उणरी इच्छा । जद जबरी सूं भारमलजी स्वामी नै लेयनै दूजी हाटे जायनै बैठो । आहार पांणी आणने करावा लागौ । जद भारमलजी स्वामी बोल्या -- हूंतौ न करूं । नित्य धामै पिण करै नहीं । तीजो दिन आयो वली घणी मनुहार करवा लागौ । जद भारमलजी स्वामी कौ - थारा हाथ रौ आहार करवा रा जावजीव त्याग है । पछे भीखणजी स्वामी नै आंण सूप्या । बोल्यो – औ तो थासूं इज राजी है । थां कनैईज राखौ । थें नवी दिख्या न लोधी है जितरै म्हारौइ ठिकांणौ
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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