SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिक्ख दृष्टांत पधारीया । एह समाचार नाथांजी रे मुंह सुण्या ज्यूं हीज लिख्या छै । आर्यां नै कमाड़ खोलायनै न ऊतरणौ इसी परूपै ते अजाण छै । आ तो रीत थेट भीखनजी स्वामी थका री है। १९०. थांरी आज्ञा री जरूरत नहीं खैरवा रा भगजी दिख्या नै त्यार थया। जद काका बाबा रा भाई बैहदौ घणौ कोयौ । कहै--म्हारी आज्ञा नहीं। जद स्वामीजी फरमायौ- थांरी आज्ञा रौ कारण नहीं। ___ पछै बड़ी बहिन री आज्ञा लेई दिख्या दीधी। पछै त्यां बैहदौ घणौ कीधौ। स्वामीजी रे मुंहढा-मुंहढ झगड़ौ घणां दिनां तांई कीधौ पिण स्वामीजी कांइ गिणत राखी नहीं। __ पछै स्वामीजी भगजी नै पूछ्यौ-तोनै उवे पाछौ ले जावैला तो तूं कांइ करैला । जद भगजी बोल्यौ-घर मै ले जावै तौ म्हारै च्यारूइं आहार नां त्याग है । ए बात सं० १८५९ री । पछै दिख्या दीधी। साठे चौमासो सरीयारी कीधौ । तिहां चौमासा मै ते काका बाबा रा बेटा भाई बैहदौ मोकळो कीधौ । स्वामीजी न्याय मारग चालतां कोई री गिणत राखी नहीं। १९१. मर्यादा बांधी देसूरी वाला नाथूजी साध नै जीभ रौ लोलपी जाणनै घृत दूध दही मिष्टान कड़ाइ विगै खावा री मर्यादा साधां रै बांधी सं० १८५९ रे वर्स । १९२. दिख्या दोधी तौ संभोग भेळौ नहीं .. वीरभांणजी ने स्वामीजी फरमायौ-पना नै दिख्या देवा री आज्ञा नहीं । अनै जो दिख्या दीधी तौ आंपां रै आहार पाणी रौ संभोग भेळी नहीं पछै वीरभांणजी पना नै दिख्या दीधी। जद स्वामीजी आहार पाणी नौ संभोग तोड़ नांख्यौ। पछै इन्द्रयां सावज्ज इसी विपरीत सरधा ले उठ्यौ । १९३. दिख्या दोज्यौ देख-देख ओटा सोनार नै दिख्या दीधी। तथा वीरां कुंभारी नै दिख्या दीधी। ते समपणे प्रवर्त्या नहीं, तिणसू महाजन बिनां और नै दिख्या देवा री रुचि ऊतरी।
SR No.032435
Book TitleBhikkhu Drushtant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva harati
Publication Year1994
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy