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________________ पंडिय तेयपाल विरइउ वरंगचरिउ ।। ॐ नमो वीतरागाय' ।। पणविवि जिणई सहो जियवम्मीसहो केवलणाणपयासहो । सुरनरखे यरवुहयणु' पय-पयरुह वसुकम्मारि विणासहो । । छ || वसुगुण समिद्ध पणवेवि सिद्ध आयरिय णमो जगि जे पसिद्ध । उज्झाय साहु पणविवि तियाल सिवपहु दरसाविय गुणविसाल । वाएसरी' होउ पसण्णबुद्धि जिणवर वाणिय कय विवलबुद्धि । हउं णेडु छंदलक्खणविहीणु वायरणु ण याणमि बुद्धिहीणु । धिट्ठत्त करेमि कव्वु तंपि । वित्थरय' जेण पविमल सुकित्ति । जिणभत्तिलीण पंडियमहंत । परिट्ठवहु चारुपउ परमभव्वु । महुचिंतउ वण्णिय मणिमहंत । मइ गमिउ णिरत्थउ सयलकालु । * उ जाणमि संधिसमास किंपि हउं जाणमि जिणवर-भत्ति' जुत्ति जे विउल-वियक्खण' - बुद्धिवंत ' ते हीणाहिउ पउमुणिवि कव्वु सुरसर'णयरहि णिवसंत संत महु णामु पसिद्धउ तेयपालु घत्ता - एवहि हउं करमि, चिरमलु "हरमि, रायवरंगचारुचरिउ । जणु जणियाणंदु, तमुहयचंदु, कोअहलसएहि भरिउ । । 12 । । 2 कलिकालु 'एहु संपइ रउद्दु तहि दुज्जण जण परदोस लिंति दुज्जण दव्वीयर सरिस पाव अइ दुस्सह भारह दुहु समुद्दु । वहुइ पाविय महियलि भमंति । सरलत्तु ण' गच्छहि' कुडिल भाव' । 1. 1. K, ऊं नमो श्री वीतरागायः । आचार्य विसालकीर्ति गुरुभ्यो नमः । 2. A, K, N, णुय 3.K, वाएसरी 4. A, K, N, हउ; अपभ्रंश के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि हउं पाठ अधिक शुद्ध है। 5. K, भत्त 6. K, विछरय 7. K, वियकरण 8. K, वुद्धिवंत 9. K, सुरमर ★ इस पंक्ति के स्थान पर N, प्रति के अनुसार 'मइ धम्मविहीणउ गमिउ कालु' पाठ भी लिया जा सकता है। 10. A,K, हंउ हउ; अपभ्रंश के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि हउं पाठ अधिक शुद्ध है । 11. K, में चिरम शब्द नहीं है। 12. K, में नंबर नहीं हैं। 2. 1. N, ऐहु 2. A,N, दुक्खहु 3. K, ण्ण 4. K, गछहि । 5, N, पाव
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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