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________________ 30 वरंगचरिउ श = स, शिरोरूह = सिरोरुह, पाश = पासु (3/4) ष = छ, षटखण्ड = छक्खंड (1/13) 13. क्ष के स्थान पर ख, छ, झ, क्ख या घ प्रयुक्त हुए हैं, यथाक्ष = क्ख, रक्ष = रक्ख (3/4) क्ष = झ, क्षि = झूरंति (3/6) क्ष = ख, क्षमावान = खमंतो (4/3) क्ष = छ, मृगाक्षि = मयच्छि (3/8) 14. त्य के स्थान पर च्च, श्य के स्थान पर च्छ और द्य के स्थान पर ज्ज का प्रयोग हुआ है, यथा त्य = च्च, जात्य = जच्च (3/10), प्रत्यन्त = पच्चंत (4/5), तत्त्व = तच्च (1/10) 15. शब्दों के मध्य और अन्त में स्थित असवर्ण संयुक्त वर्ण सवर्ण वर्ण में बदल गये हैं, यथा-- धर्म = धम्म (1/11), कर्म = कम्म (2/1), सिक्त = सित्त (3/2) दुर्गम = दुग्गम (3/4) उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त वरंगचरिउ की भाषा में कतिपय अन्य विशेषताएँ भी हैं(1) ज्ञ = ण, केवलज्ञान = केवलणाण (1/1) (2) ह्य = ज्झ, दोह्य = दुज्झइ (3/8) (3) ध्व = झु, ध्वनि = झुणि (1/8) (4) स्थ = ठ, स्थ+मि = ठामि (1/3) स्न = ण्ह - स्नेह = णेह (3/6) (6) त्स = च्छ - उत्साह = उच्छाहु (1/8) (7) ध्य = झ - असाध्य = असज्झ (3/8), ध्यान = झाणु (4/22) (8) प्स = च्छ – अप्सरा = अच्छर (1/8).
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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