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________________ 49 वरंगचरिउ काव्य है। यह पांच संधियों में निबद्ध है। कवि की दूसरी रचना 'महापुराणकलिका' है, जो 27 संधियों में विरचित एक हिन्दी प्रबंधकाव्य है। 'शांतिनाथचरित्र' में सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ का संक्षेप में जीवनचरित्र वर्णित है। कवि ने यह प्रबन्धकाव्य वि.सं. 1652 में भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन चकत्तावंश के जलालुद्दीन अकबर बादशाह के शासनकाल में ढूंढाहड देश के कच्छपवंशी राजा मानसिंह के राज्य में लिखा था। तब राजा मानसिंह की राजधानी अंबावती/आमेर में थी।' कवि के पितामह का नाम साहु सील्हा और पिता का नाम खेता था। ये खण्डेलवाल जाति और बुहाड्या गोत्र के थे। ये भगवान् चन्द्रप्रभु के विशाल जिन मन्दिर से अलंकृत लुवाईणिपुर के निवासी थे। कवि संगीत, छन्द, अलंकार आदि में निपुण तथा विद्वानों का सत्संग करने वाला था। इनके गुरु अजमेर शाखा के विद्वान् भट्टारक विशालकीर्ति थे। मुनि महानन्दि ___ मुनि महानन्दि भट्टारक वीरचन्द के शिष्य थे। इनकी रची हुई एकमात्र कृत बारक्खड़ी या पाहुड़दोहा उपलब्ध है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति दि. जैन तेरहपंथी बड़े मन्दिर, जयपुर में क्रमांक-1825 वेष्टन सं. 1653, लेखनकाल वि.सं. 1591 मिलती है। इससे यह निश्चित है कि रचना पन्द्रहवीं शताब्दी या इससे पूर्व रची गई होगी। डॉ. कासलीवाल जी ने इसका समय पन्द्रहवीं शताब्दी बताया है। पाहुडदोहा के रचयिता एक राजस्थानी दिगम्बर जैन सन्त थे। किसी-किसी हस्तलिखित प्रति में कवि का नाम 'महयंद' (महीचन्द) भी मिलता है। इस कृति में 335 दोहे हैं। किसी प्रति में 333 दोहे देखने में आते हैं। अपभ्रंश में अभी तक उपलब्ध दोहा-रचनाओं में निःसंदेह यह एक सुन्दर एवं सरस रचना है।' कवि हरिचन्द ___ अपभ्रंश में हरिश्चन्द्र नाम के दो कवि हुए हैं। एक हरिश्चन्द अग्रवाल हुए, जिन्होंने अणत्थमियकहा, दशलक्षणकहा, नारिकेरकथा, पुष्पांजलिकथा और पंचकल्याणक की रचना की थी। दूसरे कवि हरिचन्द राजस्थान के कवि थे। पं. परमानन्द शास्त्री के अनुसार कवि का नाम हल्ल या हरिइंद अथवा हरिचन्द है। कवि का 'वड्डमाणकव्व' या वर्द्धमानकाव्य विक्रम की पन्द्रहवीं सदी की रचना है। इसके अतिरिक्त दो रचनाएं और हैं-मल्लिनाथ काव्य एवं मदन पराजय। इनका रचना स्थल राजस्थान है।' 1. जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह, प्रस्तावना, पृ. 130 2. वही, पृ. 130-131 3. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्र भंडार की ग्रंथसूची, भाग-2, पृ. 287 4. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व, पृ. 173 5. राजस्थान का जैन साहित्य, पृ. 149 6. वही, पृ. 150 7. वही, पृ. 150
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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