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________________ वरंगचरिउ हैं और सभी स्थलों पर कवि का कल्पनात्मक व भावात्मक चातुर्य पर्याप्त रूप से देखने को मिलता है, जो इस प्रकार है वरांगचरित काव्य के नायक वरांगकुमार हैं, जो एक राजा के पुत्र हैं, किन्तु सौतेले भाई सुषेण और सौतेली माता मृगसेना के विद्वेषवश, उनके षड्यंत्र के द्वारा वह घर से जंगल की ओर निर्वासित किया जाता है। पश्चात् वरांग नाना प्रदेशों में भ्रमण करते हैं और अपने शौर्य, नैपुण्य व कलाचतुर्यादि द्वारा अनेक राजाओं व राजपुरुषों को प्रभावित करते हैं। बड़े-बड़े योद्धाओं को अपनी सेवा में लेते हैं तथा अनेक राजकन्याओं से विवाह करते हैं। फिर पुनः अपने घर पर आकर जीवन के अन्तिम चरण में संसार से विरक्त होकर मुनि दीक्षा लेते हैं और अंत में सर्वार्थसिद्धि को प्राप्त करते हैं। उक्त विषय पर यदि हम विचार करते हैं तो चरित्र का यह ढ़ांचा स्पष्ट रूप से वाल्मीकिकृत रामायण एवं विमलसूरि कृत पउमचरियं में पाते हैं। वहां भी चरितनायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम को राजकुमार अवस्था में ही अपने विमातभ्राता भरत और विमाता कैकेयी तथा उनके बीच राज्याभिषेक संबंधी विवाद के निमित्त से प्रवासित होकर नाना प्रदेशों में (14 वर्ष वनवास) भ्रमण करना पड़ता है और अन्त में स्वयं अपने प्रति घोर अन्यायी महाबलशाली लंका नरेश को पराजित कर वे अपनी राजधानी को लौटते हैं, राज्याभिषिक्त होते हैं और अन्त में परमधाम मोक्ष व आत्मस्वरूप को प्राप्त करते है। ___"वरांगचरित की कथा का मूलस्रोत जहासिंह नन्दी का वरांगचरित है, जो संस्कृत भाषा में रचित है एवं प्रथम जैन महाकाव्य है। इसका समय लगभग सातवीं शताब्दी निश्चित है। इसकी विशाल विषयवस्तु 31 सर्गों में निबद्ध हैं।" ___ रामायण के उक्त ढांचे ने परकालवर्ती समस्त संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश कथा साहित्य को प्रभावित किया है। महाभारत में पाण्डवों के प्रवास आदि का भी यही ढांचा है। कथासरित्सागर के साक्ष्य के अनुसार उसके मूल ग्रन्थ गुणाढ्यकृत बृहत्कथा में भी यही ढांचा पाया जाता है। वसुदेवहिण्डी की भी यही रूपरेखा है तथा समस्त चरित रचनाएं प्रायः इसी सांचे में ढाली गई हैं।' णायकुमारचरिउ (पुष्पदंतकृत) का भी यही ढांचा प्राप्त होता है। 1. जैन कथाओं का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 20
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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