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________________ वरंगचरिउ 4. आदि में सर्वदा णकार का ही प्रयोग हुआ है I 5. अशुद्ध वर्णों / अक्षरों एवं मात्राओं को काली स्याही से मोटी पंक्ति खींचकर मिटाया गया है। 6. अनावश्यक अनुस्वार की प्रवृत्ति अधिक है । 7. दु और हु में अन्तर पकड़ना कठिन प्रतीत होता है। 8. भूल से छूटे हुए पदों अथवा वर्णों को हंस पद देकर उन्हें बगल, ऊपर या नीचे अर्थात् यदि अक्षर नीचे की ओर हो तो नीचे की ओर ही दिया गया है साथ ही चिन्ह एवं पंक्ति सं. देकर लिखा गया है । अर्थ स्पष्ट करने के लिए कहीं कहीं शब्दों का अर्थ भी दिया गया है, जहां बराबर ( = ) का चिह्न लगाया गया है। 9. 'ष' इस आकृति को ख पढ़ा जाता है लेकिन कहीं-कहीं लिपिकार की गलती से 'स' के लिए 'ष' का प्रयोग हुआ है, यथा- सुषेण । 29 . A, प्रति : • A, प्रति अजमेर स्थित भट्टारक हर्षकीर्ति शास्त्रभण्डार से प्राप्त हुई। यह प्रति जीर्ण अवस्था में है, किन्तु पूर्ण प्रति है। इसमें 56 पत्र है । इसका आकार 11 x 5 है। इसका भण्डारण क्रमांक - " 1100 एवं ग्रंथ क्रमांक - 104 है। इसमें प्रत्येक पेज में 10 पंक्तियां एवं 35 अक्षर हैं।" प्रतिलिपि काल वि. सं. 1607 दिया हुआ है। इसमें दीर्घ प्रशस्ति प्राप्त होती है, जिसमें रचयिता के परिवार, गोत्र एवं गुरु परम्परा का उल्लेख है । प्रति का आरम्भ इस प्रकार है : ॐ नमो वीतरागाय । पणविवि जिणईसहो जियवम्मीसहो केवलणाणपयासहो । सुरनरखेयरवुहणुय पय पयरूह वसुकम्मरि विणासहो । । छ । । अन्त में प्रशस्ति है : संवत् १६०७ वर्षे वैशाखवदि दिन अमरसर शुभस्थाने । राय श्री सूयमल्लविजयराज्ये ।। श्री मूलसंघे नंद्याम्नाये । बलात्कारगणे। सरस्वतीगच्छे। श्री कुन्दकुंदाचार्यान्वये । । भट्टारक श्री जिनचंद्र | तत्पट्ट...श्री प्रभाचंद्र। मंडण श्री रत्नकीर्ति तत् शिष्य सिद्धांतधर्म्मामृत पयोधरान् मंडलाचार्य श्री भुवनकीर्ति तदाम्नाये खंडेलवालवंशे । सावडगोत्रे । सा सूंप तस्यभार्या रूहै । तस्य पुत्राचत्वारः । प्रथम पुत्र संघभारधुरंधर सा. रणमल्ल । द्वि. पुत्र सा. वल्लालु । त्रि पुत्र सा. ईसर । चतु पुत्र साहपोल्हण ।। एतेषां मध्ये सा. रणमल्ल । तस्यभार्या रयणादे ।। तत् पुत्रात्रिय । प्रथम पुत्र सा. ताल्हू द्वितीय पुत्र सा. धरमा । त्रि पुत्र सा. मठू । सा ताल्हू भा. केलूं तस्य पुत्र त्रिय । प्रथम पुत्र भृणां
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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