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________________ 202 18. 19. वरंगचरिउ 18 तणु धणु जोवणुणियजीवयव्वु लायण्णु' वण्णु पुणु सुयण संगु मायंग तुरय जंपाण - जाण घण छाय जेम ते विहडि जंति धय - चामर - छत्त विहूसणाइ ते सयलु वि अव वप्प म तिय गणु मोहें मइ भुत्तु आसि डज्झउ इंदिय सुहु-दुहु गुरुक्कु जगि सासउ किंपि ण रहइ इत्थु जो दिवसु उवण राहं जंति रु वंधिउ तरुणी मोहपासि चिर हुय जगि महिवइ वलसहंत ते पुण जममुहि णिवडिय णिराय इहु तणु भक्खेसइ दयविहीणु घत्ता - सुहणिहि संपययर, कहि गय सुरतर, कहि भरहु णराहिउ, भूयलु साहिउ 19 किं अम्हारिसु कीडय समाणु जं जं दीसइ संसारि सारु असरणु परिभमियउ जीउ आसि णारय पुणु णिवसिउ दीहयाल लइ-लइ वि मुक्क वहु विविहगत्तु जणु मरणहो वीहइ सव्वु कोवि . जरमरणु करतह कवणु सुक्ख इत्थी दव्वुवि मोहंधु जीउ चउगइ संसार अवत्थ दिनु मिच्छत्तालंकिउ पावि लग्गु सुरधमिव भंगुर लोयसव्वु । जलबुव्वु व सण्णिहु हवइ भंगु । विविहइ पासायइ णं विमाण । अह विज्जु जेम थिर णउ रहंति । सिंहासण वत्थु विणिव सणाइ । संझा यत्तणु जाइ' जेम | ते पुणु जाएसहि दुह पयासि । कंडू समाणु गणि मुणीहि मुक्कु । जमु कवलेसइ उप्पण्ण वत्थु । सो जमउरि पहहि पयाणु होंति । तो विण तिप्पइ जिम सव्वगासि । जिण - चक्कवट्टि - हलहर महंत । अम्हह को रक्खइ धम्मराय । जम रुट्ठइ अइवलवंतहीणु । कहि गय कुलयर सिरि पवर । कहि भुव वलिसरसमु अवर ।। १८ ।। कालें सुरेंदु हुइ गय वि पाणु । तं तं हउं मण्णमि सहु असारु । जलिथलि' णहयलि बहु दुक्खरासि । तिरियतु' विहु जहर धीयवाल । सरणु वि रहिउ जर-मरण पत्तु । पाविय सुहु वंछइ पुणु वि तोवि । हउं भमिउ जोणि चउरासिलक्ख । परिभमिउ णिरतरउ वहि दीउ । जिणवयणं रसाइण विणु अणि । उ लहइ जीउ सग्गा पवग्गु । 1. A, लायणु 2. N, जोइ 3. A, कुरुक्कु 4. N, कर 1. K, छलि 2. K, त्तिरि 3. K, जहं 4. K, करंतह
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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