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________________ 196 14. वरंगचरिउ णिय तेयइ णिज्जिय बालमित्तु' वसु-अट्ठाहरण-विहूसियंगु तित्थु वि पुरवर णिवसंत-संतु अक्खइ हउं साहमि रायदुद्रु हउं वाजें हरियउ आसि जाम जहि रणि जित्तियउ सुसेणु भग्गु तं भण्णिवि' को किउ दूवचंडु पच्चंत णिवइ' महु हियइ सल्लु यउ भणहि कइवि संगरु करेहि पइं उप्पर चडिउ वरंगु राउ ता लेहु समप्पहि चारुवण्ण गउ दूव लेवि जो लिहिउ पत्त सो णिसुणिवि संकिउ नियमणेण घत्ता - ता मंतु " करेविणु, संक यि पुत्ति लएविणु, गव्वु 11 आएवि णमंसिउ राउ तेण खम करहि देव हउं दोसवंतु ता भइ वीरु वरतणु कुमारु महु' आण पडिच्छहि जीवयंतु इय वयणइ तहो संतोसु जाउ पुणु धीय मणोहर दिण्ण आसु परसुप्पर णियड करेवि णेहु वरतणपहाउ वट्टियउ केम साहिय महि जलणिहि सीम लेवि गइ जिय मुणाल सारंगु णित्तु' । सहु रइसुहु विलसइ वरं । इक्कहि दिणि सत्तु णिवइ कयं तु । णामेण कुलाहिउ अइणिकिट्टु । महु तायहो उपरि गयउ ताम । सो हउं जित्तउ कइ पायलग्गु । जज्जाहि वियक्खण जहि पयंडु | जण'पयडु कुलाहिउ सुहडमल्लु । अह केर पडिच्छहि लत्थि देहि । समरिउ पियवंधव वइरभाउ । इय वयणइं लग्गिय अइ रवण्ण । जाय वि पुणु अक्खिय सयलवत्त । बुल्लाविय णियमंतयणु तेण । धरेविणु 2, दुद्धरु मुणिवि वरंगपहु । मुएविणु", आयउ सो मंतियहि सहु" ।। १३ ।। 14 बलवंतु वि संसिउ तहो भएन । तु पायहि णिवडिउ अरिकयंतु । मइ खमिउ सव्वु किउ दोसभारु । सुहि रज्जु करहि णिपुरि वसंतु । मणि धरिय केर मुणि वलपहाउ । अवरु विसउ पुत्तिय दिण्ण तासु । पुणु णिपुरि पत्तउ कणय देहु । णहि दिणमणि णिसियर जुण्ह जेम । पुर-पट्टण - णयरइ विविह सेवि । 3. A, K, मित्त 4. A, K, N, णित्त 5. A, K, N, तहं 6. A, K, N, सुखेण 7. N, पभणिवि 8.A, K, णिवइं 9. A, K, भरणहि 10. A, K, N, वयरभाउ 11. K, मंत 12. A, K, N, धरेपिणु 13 A, K, N, लएपिणु 14. A, K, N, मुएपिणु 15. K, सहू 1. A, K, N, मह
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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