SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वरंगचरिउ अपभ्रंश को 'सामण्णाभासा' (सा.भा.) और गामिल्लभाषा (ग्राम्यभाषा) कहते हैं सामण्ण भास छुडु सावडउ। छुडु आगम-जुति का वि घडउ । छुडु होन्तु सुहासिय-वयणाई। गामिल्लभास परिहरणाई।।1.3.10-11 ।। उक्त सभी अपभ्रंश मूलक शब्दों के अर्थ समान हैं और भाषा के लिए 'अपभ्रंश' संज्ञा सर्वस्वीकृत है। तिरस्कार सूचक यह नाम संस्कृत के आचार्यों ने इस भाषा को दिया है। संस्कृत शब्द के 'साधु' रूपों के अतिरिक्त लोक तथा साहित्य में प्रचलित भिन्न शब्द रूपों को महाभाष्यकार पतंजलि ने 'अपशब्द' या अपभ्रंश संज्ञा दी और महर्षि प्रदत्त इस संज्ञा को बिना आपत्ति के सभी ने स्वीकार कर लिया। श्री रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार-प्राकृत से बिगड़कर जो रूप बोलचाल की भाषा ने ग्रहण किया वह भी आगे चलकर कछ पराना पड़ गया और काव्य रचना के लिए रूढ़ हो गया। अपभ्रंश नाम उसी समय से चला। जब तक भाषा बोलचाल में थी, तब तक वह भाषा या देशभाषा कहलाती रही। जब वह भी साहित्य की भाषा हो गयी, तब उसके लिए अपभ्रंश शब्द का व्यवहार होने लगा। इसी प्रकार का उल्लेख यहां भी प्राप्त होता है। वहां कहा है कि अपभ्रंश एक भ्रष्ट भाषा है। वस्तुतः अपभ्रंश वह भाषा है, जिसकी शब्दावली एवं वाक्यविन्यास संस्कृत शब्दानुशासन के नियमों और उपनियमों से अनुशासित नहीं है, जो शब्दावली देशी भाषाओं में प्रचलित है तथा संस्कृत के शब्दों के यथार्थ उच्चारित न होने से कुछ विकृत रूप में उच्चारित है, वह शब्दावली अपभ्रंश भाषा के अन्तर्गत आती है। देवेन्द्रकुमार शास्त्री ने अपना मंतव्य प्रस्तुत करते हुए कहा है कि अपभ्रंश के लिए व्याकरण का सबसे पहला प्रयोग है-अपशब्द । अमरकोश में अपभ्रंश का अर्थ 'अपशब्द' है। इससे अतिरिक्त लगभग सभी कोशों में अपशब्द तथा भाषा विशेष पाया जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि अपभ्रंश शब्द का अर्थ बिगड़ा हुआ शब्द अथवा बिगड़े हुए शब्दों वाली भाषा है।' - रामगोपाल शर्मा के अनुसार अपभ्रंश शब्द भ्रंश् धातु में 'अप' उपसर्ग लगने से बना है। सिद्धान्त कौमुदी में 'भ्रंशु-अधःपतने' कहकर भ्रंशु शब्द की जो व्याख्या की गई है वह अप उपसर्ग लगा देने से अधिक सार्थक हो जाती है। संस्कृत में अपभ्रंश शब्द का प्रयोग 'अपशब्द' अर्थ में किया गया है तो इसका माप क्या है? तब कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से जो शब्द व्याकरण के नियमों के अनुसार है वह शुद्ध है एवं जो अनुरूप नहीं है, उसे अपभ्रंश, अपशब्द या अपभ्रष्ट कहा जा सकता है। ___ अतः 'अपभ्रंश' संस्कृत भाषा का तत्सम शब्द है। अपभ्रंश' शब्द 'भ्रंश' धातु में 'अप' उपसर्ग और घञ् प्रत्यय के योग से निष्पन्न हुआ है। अतः अपभ्रंश का शाब्दिक अर्थ है-च्युत, भ्रष्ट, स्खलित, पतित, अशुद्ध, और विकृत। डॉ. नामवरसिंह के शब्दों में भाषा के सामान्य मानदण्ड से जो शब्दरूप च्युत हों, वे अपभ्रंश हैं। 1. देवेन्द्र शास्त्री, भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य, प्र. 15-16, 2. रामगोपाल शर्मा, अपभ्रंश भाषा, काव्य व साहित्य, पृ. 3
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy