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________________ 172 वरंगचरिउ रे कुल जाइहीण गय पोरिस मा अवत्थ पावहि इहवइ वस। कालविहीण मूढ कि ण गच्छहि णियय गेहि वंधवसुहि पिच्छहि। मइ किराडु जोय वि तुह' दिण्णउ अभयदाणु लइ किं मणु सुण्णउ। आइ पएसि सिट्टि पई सेविउ एवहि मरहि काइगय वेविउ । इय वयणहि वरतणुया घोसइ उत्तरु दाइवि णियगिर पोसइ। रे रे दुट्ठ इंदसेणु वि सुय कहि सिक्खिउ इय वयणहि अभुय । कुल जायइ लभइ किं उण्णय पोरिसु लभइ रे रे दुण्णय। हउ वणिवरु तुहु णरवइ णंदणु एवहि किद्धउ दोहिमि भंडणु। लब्भइ बलपोरिस इह ट्ठाणहों रक्खि-रक्खि जीविउ अप्पाणहो। तुज्झ मरणु अणयालिह वेसइ । कइ भज्जहि महु वयणउएसइ। वणि अच्छइ असरिस बल जुत्तउ करिगणु तासइ कोहहि रत्तउ। अवरु वि वणयर जममुहि लावइ तहो कुल जाइ कवण दरिसावइ । मइ चिरु वणयरबलु अवहेरिउ वणिगणु मारंतउ सइ पेरिउ। गय किराय भज्जिवि मइ अग्गइ किं पई ण मुणिय भग्ग समग्गइ। घत्ता- इय पच्चुतरू देवि तहि मुक्किय वाण भयंकर। ते जाइवि लग्गिय अरिवलहि पिसुणु व जीव खयंकर। खंडय-णियभुय तेण णिवारियं, गंदावत्तहि धारियं । पुणु वि तेण तहि मुक्कयं विविहइ तिक्खपिसक्कयं ।।१८।। 19 तहि अवसरि वहु सुहड समूहें कुमरहो उप्परि आउह हें। घल्लिय कहिमि कुंत दुणिरिक्खइ केहिवि' घल्लिय असिवरतिक्खइ। केहिवि मुग्गर अवर तिसूलइ अण्णु वि गय सव्वल पुणु सूलइ। केहिवि चक्क हलाउह घल्लिय णियभुय सयल परम्मुहि पिल्लिय। गयइ णिरत्थ केम पहरणगणु जेम जाइ पाविय किविणहो धणु। अहवा धम्महीण मणुयत्तणु तेण सव्वंहूयइ ण कयत्तणु। 18. 19. 1. A, K,N, तुहं 1. N, कहिवि
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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