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________________ 164 वरंगचरिउ खंडयं-तहि अवसरि मंतीयणं, वुल्लावि वि महिरायणं। भणइ राउ तं किज्जइ, जहि पुरलोउ णच्छिज्जइ।।११।। 12 भणइ मंति वारणु अपिज्जइ अवरुवि धणु मग्गइ तं दिज्जइ।' अवरु भणइ एहउ णवि सीसइ मयगल अवसरु णत्थि ण दीजइ। चिरु जच्चंतह गयवरु उण्णउ सो तहि दिणि अम्हइणवि दिण्णउ । किं दिज्जइ किं अप्पइ वारणु किज्जइ अवरु किंपि लहु कारणु। अण्णु लवइ साकेयहो राणउ देवसेणु णरवरह पहाणउ। सो आणिज्जइ णियय सहायहो देस कोसबललच्छिसहायहो। सो रणि जित्तइ रिउबलदुद्धरु तहो सरिसउ को समरि धुरंधरु। भणइ अण्णु जयसिरि रणि पाविवि सो अम्हह वलु लहुयउ भाविवि। णियपोरिसवलेण महि लेप्पिणु' करइ रज्जु जयतूर हणेप्पिणु। तो पच्छइ किं किज्जइ णरवइ जो बलवंतउ सो णिव महिवइ। इक्कु वयणु हउं पभणमि चंगउ पइ वणिवइ घरि णाम वरंगउ। देव देव सो अच्छइ भल्लउ अरिगिरि सोयामणि व महल्लउ । जहि चिरु बारहसह सइ घाइय वणयरगणु वल्लु जम पहिलाइय। किण्ण' मुणहि सुहडह सिर सारउ सो सहाय किज्जइ गरुयारउ । घत्ता- पर सो ण मुणिज्जइ कोवि णरु, किं वणि किं णिवणंदणु। जाणिज्जइ दुद्धरवलसहिउ, रिउ रणि करइणि कंदणु। खंडयं-पुरवरि दिज्जइ घोसणं पडह सहुरण घोसणं'। सुहड वूहु दरसिज्जइ, सइ समरंगणु किज्जइ ।।१२।। 12. 1. A, दिज्जइं 2. A, K, N, जच्चंतहं 3. N, तहु एवइ किं अप्पइ के स्थान पर पाठ मिलता है। 4. A, K,N, लेप्पिणु 5. A, N, हणेपिणु 6. A, K, किजइ 7. A,K, किंण्ण 8. K,N, सुहडहं. 9. A,K, पोसणं 10. A, प्रति में सइं के स्थान पर ‘णाहं पाठ प्राप्त होता है।
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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