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________________ 156 वरंगचरिउ घत्ता- पुणु संति जिणिंदहो थुय करिवि रिसिवर पुरइ णिविट्ठउ । रिसि भासइ कंत पुराहिवइ जणवइ मज्झि गरिठ्ठउ।। खंडयं- कोवि ण वल्लहू पिक्खयं, णिय-णिय कज्ज वियक्खयं । णेहु करिसुप्परि वद्धयं, जणु जीविय धण लुद्धयं ।।७।। किं हरिस-विसाउ कुणंतएण पाविज्जइ णियकम्मोदएण। धण जीविय रइकामहो' णिराय कोवि ण तिप्पइ जिम अग्गिच्छाय। जणु सयलु अतिप्पड़ गयउ आसि भाविय अमुणंतउ कम्मपासि। जाएसहि अवर वि धम्महीण संपइ वि अतिप्पहि पावलीण। जइ किज्जइ गरुय विसाउ णिच्चु तो पुण णावइ मूयउ अणिच्चु । मा करहि सोउ णिव णियमणम्मि हरिवप्पु व आवेसइ घरम्मि। सुय पुण्णे लब्भइ परम शक्खुि- पुण्णे फेडिज्जइ सव्व दोक्खु । सुहु-दुहु जीवह जगि देइ कवणु णिय कम्मु उवज्जिउ जम्मु' भवणु। पावें जं जं आवइ अवस्थ तं तं समग्ग सहियइ समत्थ। पुण्णे घरि दुज्झइ कामधेणु पावें जणु कोवि ण देइ वयणु। गय–णयर-कप्प सण्णिह हवंति वल्लह संगमु विहडेवि जंति। धणु जोव्वणु जलवुव्वुय समाणु खणु भंगुरु तडि समु सुहि पमाणु। फेणु व णिस्सारउ मणुय जम्मु इय जाणिवि किज्जइ णिवइ धम्मु । रिसि वयणइ मणियाणंदु जाउ लहु णरवइ मण णट्ठउ विसाउ। पुणु रिसि संबोहइ जिय मयच्छि वरतणु तिय सोयाउरइ पिच्छि। भो सुणहु पुत्ति णिच्चल मणेण तुह कंतु वि णि उहयवरि वणेण। सो आवेसइ कइवइ दिणम्मि मा करहु सोउ णिय-णिय मणम्मि । सोएण ण यावइ तुम्ह कंतु सोयइ पाविज्जइ पाणयंतु। घत्ता- अण्णु वि बहुयइ वयणइ भणिवि ते संबोहिय जयवरेण। संबोहिय णिव-णंदण-जणणि गिरिव धीरुधम्मायरेण।। खंडयं-णिउ णमिऊण भुणीसरं गेहि पत्तु अवणीसरं । जुय पउ दिण्णु सखेण्यं गरयउ किद्ध सुसेणयं ।।८।। 8. 1. A, रइं 2. A,K, N, तोर; 3. N, पुणे 4. A, K. N, जुम्म 5. A, K. N. तुहं 6. A,K,N, अंण्णु
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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