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________________ वरंगचरिउ ___ भारतीय वाङ्मय का उषाकाल, वैदिक काल में उन ऋषियों की वाणी से प्रारम्भ होता है, जिन्होंने उषा सुन्दरी के लावण्य को परखा और सराहा था। प्रकृति की कोमल और रौद्र दोनों ही तरह की शक्तियों ने कौतूहल और आश्चर्य से जन-मन को भर दिया था। अतः उषाकाल के ऋषियों ने आशा-निराशा, हर्ष-विषाद एवं सुख-दुःख संबंधी उद्गारों को अलंकृत वाणी के वेष्टन में आवेष्टित कर प्रकट किया और इस प्रकार भारतीय साहित्य की प्रथम रेखा अंकित हुई। इस साहित्य की भाषा छान्दस थी। पर इतना सत्य है कि ऋग्वेद और अथर्ववेद इन दोनों की छान्दस भाषा में पर्याप्त अन्तर है। कुछ विद्वानों का अभिमत है कि ऋग्वेद की भाषा ब्राह्मणों की संस्कृत में ढाली हुई एक सुनिश्चित परम्परा सम्मत है, किन्तु अथर्ववेद की भाषा जनभाषा है।' अतएव स्पष्ट है कि आर्यभाषा और आर्य साहित्य पर द्रविड़ और मुण्डा वर्ग की भाषा और साहित्य का प्रभाव पर्याप्त रूप में पड़ा है। अथर्ववेद इसी प्रभाव को स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त कर रहा है।' ___ प्रत्येक देश और जाति के मूल संस्कार, उसकी अपनी भाषा, साहित्य तथा संस्कृति में निहित रहते हैं। जातीय जीवन, लोक परम्परा एवं सामाजिक नीति-रीतियों के अध्ययन से हमें उनकी पूरी जानकारी मिलती है। अतएव भाषा और साहित्य का प्रत्येक अंग लोक-मानस की अभिव्यक्ति का ही लिपिबद्ध स्वर होता है। मौखिक रूप में आज भी हमें गुणाढ्य की बृहत्कथा तथा प्राकृत और अपभ्रंश में लिखित कथाएँ, सूक्तियां, सुभाषित एवं अन्य उक्तियां ही गांवों में प्रचलित सुनाई देती हैं। वस्तुतः युग-युगों से साहित्यिक तथा सामाजिक परम्परा परस्पर विचारों का विनिमय करती आयी है। इसीलिए परम्परा में केवल इतिहास तथा पौराणिकता का लेखा-जोखा न होकर लोकजीवन में परिव्याप्त यथार्थ और आदर्श रूप-कुरूप, नीति और उपदेश तथा वृत्ति एवं रीति का भी समाहार हो जाता है।' __ भारतीय भाषा का बिखराव वैदिक काल में ही प्रारम्भ हो गया था। ऋग्वेद के वाक्सूक्त तथा अथर्ववेद के पृथ्वीसूक्त में स्पष्ट कहा गया है कि लोग देश के नाना क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की बोलियां बोलते हैं। अशोक के शिलालेखों से भी प्रमाणित होता है कि एक ही प्राकृत भाषा उत्तर-पश्चिम और पूर्व के प्रदेशों में भिन्न-भिन्न प्रकार से बोली समझी जाती थी। साहित्य के प्रमाणानुसार प्राकृत भाषा को विशेष प्रोत्साहन तब मिला, जब ई.पू. छठी सदी में महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों के अवतार हुए और उन्होंने अपने-अपने धर्म सम्बन्धी उपदेशों के लिए उस समय अपनी विहारभूमि में प्रचलित जनभाषा को अपनाया और अपने शिष्यों को भी आदेश दिया कि वे उसी भाषा में उनके उपदेशों की ग्रन्थ रचना करें। यह भाषा मगध देश की होने से 'मागधी' तथा 1. प्राकृत भाषा-प्रबोध पण्डित, बनारस, सन् 1954, पृ0 13-14, 2. भारतीय आर्यभाषा और हिन्दी-सुनीति कुमार चटर्जी, प्रथम संस्करण, पृ. 63, 3. भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य, देवेन्द्र कुमार शास्त्री, अ. 1, पृ. 15, 4.णायकुमारचरिउ, कविपुष्पदंत, हीरालाल जैन, प्रस्तावना, पृ. 22, 23
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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