SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 122 वरंगचरिउ अह जंपिउ इय महु रक्खि-रक्खि संतोस अमिउ मणि भक्खि-भक्खि। इय सुणिवि पवुल्लिय साहु-साहु सावय वयउ वरि णिवद्धग्गहु । जारिसु हुंतउ णियअंगरूव । तारिसु पयडिवियउ वि सुखहूव । हउं णिज्जर तिय वररुवधारि उवसग्ग णिवारिउ तुज्झ वारि। पुणु पई सुपरिक्खहो कारणेण मणुय णियरुव किउ तक्खणेण । जो तुज्झ वि गुरु वरदत्तदेव सो मज्झु वि गुरु कय तियससेव । मइ पुणु तहो वयणइ गहिउ धम्मु पई सुयण कयत्थउ कियउ जम्मु । घत्ता-परिगलियइ कइवय वासरइ मणवंछिउ सुहु होसइ। पुणु वंधव सुयण समागमणु तहो पुण्णे पावेंसइ।। दुवई-इय पभणेवि देवि अइंसण जाइय धम्मरत्तउ । सुंदरु विहि वसेण पुणु चल्लिउ जिणपयकमल भत्तउ।।३।।10 पुणु काणणि विहरिउ कुमरु जाम तह गहिउ कुमरु अइकूरबुद्धि ता चिंतिउ तेण वरंगएण ण करिज्जइ मित्तिय वइरभाउ अण्णा णियणिद्दय भावजुत्त संगरु ण करिज्जइ इत्थु वाइ जहि धरिउ कूवअंतरि पडंतु अह रक्खिउ हरि हिउ वद्धएण पुणु जलि वुटुंतउ जेहि धरिउ वणयरगण वेढिउ कुमर केम अह दुग्घरघर चारइ गिहत्थु पुणु मुट्ठि पहारहि हणिउ तेहि विहि कवण अवच्छहि मज्झि घित्तु कहि रायलच्छि किह इह अवत्थ अइपूयदुयंध कलेवराइ दुक्कियउ कम्मु जित्तउ णिवद्धु अग्गइ संपत्त किराय ताम। कक्कस वयणहि ताडिउ सुबुद्धि । हउं णिवसुउ हीण किरायएण। ण चविज्जइ करुणा वयण राउ। ण मुणहि बल'पोरिस महु पहुत्त। वहु वणयर अह कुलहीण जाइ। अहवा रक्खिउ काणणि सरंतु। जिणु सुमरंतउ तरु-उवरि जेण। सो पुणु रक्खेसइ पुबच्चरिउ। कम्महं संसारिउ जीव जेम। सुय-तिय-वंधव मोहणिय वत्थु । बंधेवि णिउ कारागारि एहि। णिवधम्मसेण धत्तिवइ पुत्तु। कुच्छिय धरत्ति कुच्छियइ वत्थ। सवरेहि वियारिय मयउ लाइ। अँजिज्जइ तित्तउ अइसणिद्ध । 4. K,N, वद्धग्गाहु 5. A,K,N,मई 6. A,K,N, वयणइं 7. A, K,N, पइ 8.N,कय' 9. A, K,N,रतउ 10. A, K,कडवक संख्या नही है। 1.K,चल 2. K, N,कूवं° 3. K,पहरहि 4.
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy