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________________ वरंगचरिउ 113नहीं जान पाता है। भली-भांति कुछ दिन शीघ्र ही व्यतीत हो जाते हैं। यथानुसार एक नरपति स्नेह में बद्ध होकर युवराज के लिए दो घोड़े देता है। वे दोनों घोड़ा रमणीय परिपूर्ण अंग हैं, किन्तु कर्ण सुन्दर नहीं है। उन दोनों घोड़ों का कुमार अवलोकन करता है किन्तु चल, बल एवं गज के भाव को नहीं जानता है। कुमार कहता है-कौन घोड़ा की शिक्षा अच्छे तरीके से जानता है, उस श्रेष्ठ रूपधारी को ही अर्पित करते हैं, तो मंत्री सुबुद्धि यह कहता है कि मैं घोड़ा की शिक्षा एवं भले-बुरे को जानता हूँ। फिर कुमार उसको ही समर्पित करते हैं। मंत्री आज्ञा लेता है और शिक्षा कल्पित करता है। घोड़ों को ग्रहण कर मन में क्रूर गुप्त परामर्श करता है। वह तुरन्त अपने घर पर लौटा। ___घत्ता-एक के लिए कुटिलगति दिखाता है और दूसरे को सरल क्रिया करवाता है। कुटिल को भेजते हुए चलाया जाता है और अकुटिल चंचलता से चलता है। 20. कुटिल घोड़ा के द्वारा कुमार वरांग को जंगल में छोड़ना कुटिल घोड़े को रथ पर नहीं रखते हैं और अकुटिल घोड़ा अपनी गति सरलता से वहन करता है। इस प्रकार घोड़ों को सिखाकर मंत्री युवराज को दिखाते हुए देता है। तुरंग (घोड़े) के मुड़ने की गति गुप्त रहती है, उसके ऊपर शीघ्र ही कुमार सवार होता है। राजा मंत्री की ढग विद्या एवं कुटिल भाव को नहीं जानता है और मंत्री कुमार को घोड़े पर सवार करता है। जैसे ही कुमार घोड़े को लौटाने की इच्छा करता है, वैसे ही घोड़ा उन्मार्ग पर चला करता है। जैसे-जैसे कुमार घोड़े को खींचता है, वैसे-वैसे वह आगे की ओर जाता है। इस प्रकार कोई रक्षक नहीं रहता है जिस प्रकार कर्मों के कारण जीव परिणमन करता है। सामंत और सुभट (योद्धा) सभी उसकी खोज में लग जाते हैं परन्तु नहीं जान पाते हैं कि भव्य कुमार कहां गया होगा? घोड़ा द्वारा अपना सुकुमाल शरीर सहित वे सभी लौटकर नगरी में पहुंचते हैं। वरांग चिंतन करता है कि यह तुरंत नहीं हुआ है, हमारे पूर्वजन्म का कोई शत्रु है, इस प्रकार मेरा यहां कोई सहारा नहीं है, जिनेन्द्र को छोड़कर वीरभट, तिर्यंच आदि लोक में कोई नहीं है। यदि मरण को प्राप्त हुआ तो क्या करना चाहिए। कुमारवरांग अपने मन में भविष्य का विचार करता है। गांव, खेड़ा (छोटे गांव), नदी एवं तालाब आदि छोड़ते हुए, घोड़े के साथ निर्जन स्थान पर पहुंचता है। एक कुएं के अंदर गिर पड़ता है, वहां पर घोड़ा को छोड़कर कुमार वृक्ष को पकड़ लेता है। कर्म के वश से वहां से बचकर निकलता है। वहां पर कोई मनुष्य नहीं दिखाई देता है। भूख और प्यास से उसके अंग सूखे (दुबले-पतले) हो जाते हैं। कैसे प्राप्त करूं? जहां सज्जनों
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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