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________________ 108 वरंगचरिउ घत्ता- विणु चायइ मंदिरु, सव्वअसुंदरु, पिउवणसरिसउ मुणहि पहु। परियणु सुणहुल्लउ, पुरिसुमडुल्लउ, वसु जंगलु खउ होइ लहु।।१६।। 17 दाणु वि दिज्जइ वरतिविहु पत्त मण-वयण-तिसुद्धिए दोसचत्त। सो दाणु पवट्ठइ वप्प केम णग्गोह विज्जु हुइ गरुय जेम। जो दिज्जइ दाणु अपत्तएहि अहवा अप्पियए कुपत्तएहि'। सो णिप्फलु गच्छइ सयलु केम उरवरि वइयउ वरवीउ जेम। भोगोपभोग-संखाइ करहु तुरियो सिखाव्वउ एम धरहु। किज्जइ सल्लेहण' अंतयालि' पाविज्जइ सुहु आयामकालि । अवरु वि वयाइ वहुभेय सुणिवि णिउ धम्मसेणु वरधम्मु मुणिवि। सायारु धम्मु संगहिउ तेण परिभावि वउ णिम्मलमणेण। तहि कुमरवरंगु' वि लयउ धम्म रिसिणा दिण्णउ विणिहय कुकम्म। केणवि संगहिय जिणिंद, दिक्ख केणवि मुणिणाहहो लइय सिक्ख । केणवि संगहिय अणुवयाइं० केणवि सिखावयगुण वयाइं"। इय गहिवि धम्म णियणयरि पत्तु मुणिवरु विहरिउ तव खीण गत्तु । इत्तहि वरंगु" अच्छइ सुहेण जिणपूय-दाण-वय उच्छवेण। घत्ता- णंदणगुण पिक्खिवि, मंति समक्खिवि, जुवरायत्तणु दिण्णउ । कलसइ पहावेप्पिणु"तूरह णेप्पिणु", आसि जम्मि तउ चिण्णउ ।।१७।। 18 तायें जुवपउ दिण्णउ जावहि कुमरवरंगहो उप्परि तावहि। सयल सुसेणयाइ सुय कुप्पिय माणभंग हुय णियमणि तप्पिय । भणहि सुसेण एहु गुरुयारउ जुवरायत्तणु पउ जिह मारउ । अहवा किण्णउ पक्ख समुज्जल अहवा किं अम्हहं वलदुव्वल। तहि अवसरि मंतीयण घोसहि वरमंत्तत्तणु वयणु जि पोसहि। लहु गरुयत्तणु कोप भणिज्जइ पुव्वजिय तव फलु पाविज्जइ। किं पंचाणणु भंजइ गन घडु गयवरु किं भंजइ भूरुहवडु । पर दिण्णउ णवि होइ पहुत्तणु पुण्णह लभइ पहुगुण कित्तणु। इय वयणहि गय णियमंदिरणिय जणणिहि कय णयणाणंदिर । गुणदेविहि उच्छाहु वि जायउ मयसेणइ सोउ संपायउ। सयलं ते उराइ मिल्लेविणु गुणदेविहि मंदिरे आवेविणु। 17 1.K, एहिं 2.A,सय N,सयल 3. A,सल्लेंहण 4.A,अंतपालि 5. A, धमसेणु 6. K,N, सुणिवि 7.A,K,N, वरंगि 8. A, K,N, दिख 9. A,K,N, सिख 10. A,K,N, "वयाइ 11. A,N, वयाइ 12. K, वरगु 13.A,K,N ण्हावेपिणु 14. A,K,N, हणेपिणु 15. A, चिण्णउ 18 1. A, K, N, तायइ 2. A,N,गरुयारउ 3. K,पक्खं जवराय
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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