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________________ 100 वरंगचरिउ अजसकित्तिपडहहु दरिसावइ सच्चु हणेइ असच्चहु भावइ। कीडंतह दयधम्म' विणास' हारंतह कडुयक्खर भासइ । अहवा जइ परधणु किं पावइ मज्जमंस दासियहि गमावई'। धणु हारिवि हुइ रोरहु भायण छंडहि बंधव णियदारायणु। राउ जुहिट्ठिलु बंधवसहियउ। संवच्छरबारह वणे रहियउ। जूवइ दुह पत्तउ गरुयारउ जूयहो कोऊहलु वि असारउ । जूव रमंतह णरभउ हारिउ अप्पाणउ तेण जि संघारिउ । इय जाणिवि जूवइ ण रमिज्जइ मणुयत्तणु सकयत्थउ किज्जइ। मंसासणु जो णिग्घिणु सेवइ सो अप्पाणउ दुग्गइ खेवइ । जो जंगलु भक्खइ मयगाविउ तहि समाण णउ अवरु ण पाविउ । जो पलु भक्खइ जीहालंपडु सो कुक्कर समाण जडयाहं जडु। गुत्थ-मुत्त-किमि असुयह संकुल अवरु वि तसथावरहं णिरंकुल। मुंचई कलेवर कोवि ण छिप्पइ पिच्छंतहं भयावणु घिप्पइ। धम्मवंत णर दिट्ठि ण पिक्खहि पाविए पाववुद्धि सइ भक्खहि। घत्ता- जो जाणिवि छंडइ अप्पउ मंडइ वयहो पहावें सुहु लहइ। जो पलु आसासइ" जीवह तासइ णरयणिवासु णिच्चु लहइ ।।११।। 12 वगुराउ वि मंसासण णडियउ दुक्खमहण्णव दुस्सइ पडियउ। एवहि मइरादोस समक्खमि णिसुणि णरेंद तुज्झ हउं अक्खमि । मइरा मत्तउ किंपि ण याणइ जणणि-सहोयरि-तिय सममाणइ। मत्तउ मग्गे पडेइ तुरंतउ सुणहुल्लउ मुहि सवइ सरंतउ। मज्जें मत्तउ वयणु ण मण्णइ जणणि-जणणु-वंधव अवगण्णइ। गायइ वायइ णच्चइ खिल्लइ अप्पाणउ दुहसायरि घल्लइ। वियलिंदिउ रोसाणलु धारइ अण्णु हणइ अह सयं संघारइ । जीवणिगोयरासि परिपुण्णउ पाव महीरुह वड्डइ उण्णउ। पिसिय मज्जु णउ किंपि वि अंतरु अण्णजम्मि दुह देइ णिरंतरु। अवरदोस जे णरयहो कारणु सयल समज्जइ मज्जहो धारणु। इय जाणिवि वय रक्खणु किज्जइ मज्जासत्तहं संगु चइज्जइ। छप्पंचासकोडिजादववलु सुररमणहं जमउरि पत्तउ खलु । 3 A,Nअच्चहु K,असच्चुहु 4 A,K,N, दयधमु 5 A,विणासइं 6 A, भासइं 7 A,K,N,णमावइ 8 K, वि 9 A,K,N,मुवइ 10 A, K,N, पिखहि 11 A, आसासइं 12 K,N,जीवहं 13 K,N, लहइं
SR No.032434
Book TitleVarang Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumat Kumar Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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