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________________ श्लो . : 1 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन | 11 व्यावहारिक जीवन भी जी पाते हैं?... क्यों व्यर्थ में एकान्त में आकर स्वात्म-वंचना करते हो, जो उभय नय का आलम्बन लेकर वस्तु-स्वरूप का बोधकर, बोधि का मार्ग स्वीकार करो, समाधि चाहते हो, ध्यान रखो- आगम के विरुद्ध करने वाले का कुमरण ही होता है, -ऐसा जिन-वचन है, जो अनुवीचि-भाषण नहीं करता, उसका समाधि-मरण नहीं होता। अहो प्रज्ञ! क्या बाल-बाल-मरण तुझे स्वीकार है, ध्रुव सत्य है कि जिसका बाल-बाल-मरण निश्चित हो गया है, उसे आगम-विरुद्ध बोलने में किञ्चित् भी भय नहीं होता। अब स्व-प्रज्ञा से स्वयं पृच्छना करो कि मेरी भवितव्यता कैसी है?.... मति-श्रुत-ज्ञान को पाकर आगम के साथ स्वेच्छाचार नहीं करो, ये ज्ञान क्षयोपशमिक है, कब क्षीण हो जाएगा, कोई निश्चित नहीं है। भगवान् कुन्दकुन्द स्वामी स्वेच्छाचारी को मिथ्यादृष्टि कहते हैं। जो मति-श्रुत-ज्ञान के बल से स्वच्छंद होकर बोलता है, उसे अरहन्त देव ने मिथ्यादृष्टि कहा है, उसे जिन-मार्ग से भिन्न समझना; जैसा कि कहा भी है मदि-सुद-णाण-बलेण दु, सच्छंदं बोल्लइ जिणुद्दिट्ठ। जो-सो होदु कुदिट्ठी, ण होइ जिणमग्गलग्गरओ।। _ -रयणसार, गा. ३ यदि आगम-मार्गी बनकर चलना भूतार्थ दृष्टि से जिन-शासन-सेवी है, तो "स्यात्' पदांकित वाणी को लेकर चलो, तब वाणी में जिनवाणी हो सकेगी, अन्यथा जग-अहितकर वचन हो जाएंगे और ज्ञानियों के वचन तो जग-हितकर ही होते हैं। अहो मनीषियो! आगम-वचन पर ध्यान दो। यदि आप वीतराग-धर्म की प्रभावना चाहते हो, तो इस गाथा को पढ़ो जइ जिणमयं पवज्जइत मा ववहार-णिच्छाए मुयह। एक्कण विणा छिज्ज तित्थं, अण्णण उण तच्च।। -समयपाहुड़, आत्मख्याति टीका 12 में उद्धृत अर्थात् यदि तुम जैनधर्म का प्रवर्तन चाहते हो, तो व्यवहार और निश्चय -इन दोनों नयों को मत छोड़ो, क्योंकि व्यवहार-नय के बिना तो तीर्थ का नाश हो जाएगा और दूसरे निश्चय के बिना तत्त्व (वस्तु) का नाश हो जाएगा; -उक्त गाथा के सार को स्वयं विद्वानों, त्यागियों को विचार करना चाहिए। .....क्या आप लोग तीर्थ व वस्तुस्वरूप के घातक होना चाहते हैं?... यदि नहीं..., तो उभय-नय निश्चय-व्यवहार का
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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