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________________ xxxii / स्वरूप-संबोधन-परिशीलन का प्रयोग नहीं होता था, पर मुझे लगता है कि बिना हाइफन के 'श्रेष्ठ' विशेषण किसका होगा?..... 'समाधि' का या 'लेना' का?....इसका उत्तर नहीं मिलता। श्रेष्ठ विशेषण समाधि-लेना रूप सामासिक क्रियार्थक-संज्ञा का है, -यह बात हाइफन के लगने पर ही स्पष्ट होती है, अतः मुझे लगता है कि हिन्दी व्याकरण व वर्तनी के नियम में ऐसी क्रियाओं के बीच में या ऐसे क्रिया-मूलक संज्ञा-पदों/अव्यय-पदों के बीच में सामासिक चिह्न/हाइफन का लगाना अनिवार्य है। निम्न प्रयोग और देखें जो-कुछ, सब-कुछ; वह-सब, यह-सब पहले दोनों प्रयोगों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि उत्तरवर्ती पद अपना कोई विशेष अर्थ नहीं रखता, वह पहले पद को ही कुछ और स्पष्ट करता है, पर पहला पद ही प्रमुख है, अतः ऐसा लगता है कि दोनों पद मूलतः सर्वनाम हैं, पर अपना अलग-अलग अर्थ न रखते हुए भी सामासिक रूप में एक-अर्थ ही कह रहे हैं, इसलिए एकीभूत हैं और इसीलिए इन दोनों के बीच में योजक सामासिक-चिह्न लगना अनिवार्य है और ऐसा नियम हिन्दी-वर्तनी-व्याकरण के लिए आवश्यक है। यही स्थिति 'वह-सब' तथा 'यह-सब प्रयोगों की भी लगभग है। ____ जो-कि, जैसा-कि, जैसे-कि आदि इन प्रयोगों को भी देखें, तो इनके भी पहले पद ही प्रमुख अर्थ-निर्धारक हैं तथा पहले पद सर्वनाम-रूप-जैसे हैं, जबकि दूसरा पद अव्यय और योजक है, पर इस दूसरे पद के बिना भी हिन्दी की सहज वाक्य-रचना नहीं बनती, इसलिए इस दूसरे पद का होना भी प्रथम पद के साथ अनिवार्य-सा है और इसीलिए इन दोनों पदों के बीच में समास होता-सा दिखता है तथा यही कारण है कि वहाँ योजक सामासिक-चिह्न अनिवार्य है। इसलिए मेरे लिए व्यक्तिशः जो सुखद हुआ, वह यह कि भाषा का विद्यार्थी होने के नाते मुझे हिन्दी वर्तनी के सिद्धांत में बहुत-कुछ जोड़ने पर विचार करने और हिन्दी भाषा के व्याकरण के सिद्धांतों की नए ढंग से प्रस्तुति को भी सामने-रखने का अवसर मिला, इस स्वरूप-संबोधन-परिशीलन की संपादन-प्रक्रिया में। ___ अभी तक जो तीन प्रकाशन स्वरूप-संबोधन के हमें प्राप्त हुए हैं, उन तीनों के मूल-पाठ अनेक स्थलों पर भिन्न-भिन्न हैं; अतः स्पष्ट है कि स्वरूप-संबोधन का मूल-पाठ भी अभी-तक अधिकतम प्रतियों को सँजोकर सम्यक् रूप से आलोचित होकर (Critically) सम्पादित नहीं हुआ है। चाहता तो मैं भी यह था कि विभिन्न हस्तागारों से मैं स्वरूप-संबोधन के पाठ/पांडुलिपियाँ एकत्रित करता और उनके आधार पर तुलनात्मक पुनर्गठन-पद्धति (Comparative Reconstrunction Method) तथा
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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