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________________ xvi / स्वरूप-संबोधन-परिशीलन सतना नगर का सौभाग्य हम सभी का परम सौभाग्य है कि हमें परमपूज्य आचार्यों, मुनिराजों, आर्यिका - माताओं- सहित त्यागी - वृन्दों के पाद - प्रक्षालन करने का निरन्तर सुअवसर प्राप्त होता रहता है। सन् 1953 में पूज्य क्षु. श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी यहाँ पधारे थे। सन् 1975 में परमपूज्य मुनिराज श्री 108 आर्यनन्दि जी महाराज के चार्तुमास का लाभ सतना नगर को प्राप्त हुआ । पूज्य श्री आर्यनन्दि जी महाराज के सान्निध्य में दिसम्बर 75 में बाहुबलि स्वामी की विशाल मूर्ति की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजस्थ महोत्सव का आयोजन हुआ । सन् 1976 में परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का शुभ नगरागमन हुआ। वर्ष 1989 में पूज्य आर्यिका श्री गुरुमति माता जी की स- संघ ग्रीष्म कालीन वाचना हुई, तत्पश्चात 1991 में परमपूज्य मुनिराज श्री 108 क्षमासागर जी, श्री 108 समतासागर जी एवं श्री 108 प्रमाणसागर जी सहित 3 अन्य पिच्छीधारी ऐलक - क्षुल्लकों का चातुर्मास संपन्न हुआ । वर्ष 1993 में पूजनीया आर्यिका श्री 105 प्रशान्तमति माता जी के चातुर्मास का लाभ सम्पूर्ण समाज को प्राप्त हुआ । जनवरी-फरवरी 94 में परमपूज्य आचार्य श्री 108 विरागसागर जी महाराज की स- संघ उपस्थिति में शीत-कालीन वाचना का सुयोग प्राप्त हुआ । 6-11 फरवरी 1998 में परमपूज्य मुनिराज श्री 108 समतासागर जी, श्री 108 प्रमाणसागर जी एवं क्षुल्लक श्री निश्चयसागर जी के सान्निध्य में भगवान् श्री कुन्थनाथ व अरहनाथ जी के जिन - विम्बों की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। इसी वर्ष हमें पुनः आचार्य श्री 108 आर्यनन्दि जी महाराज के चातुर्मास का लाभ प्राप्त हुआ। वर्ष 2000 में भगवान श्री शान्तिनाथ जी के शिखर पर सुवर्ण-मण्डित कलश व ध्वज की स्थापना हुई। इसी वर्ष पूजनीया आर्यिका श्री 105 पूर्णमति माता जी के स- संघ चातुर्मास का सुअवसर प्राप्त हुआ । वर्ष 2002 में परमपूज्य मुनिराज श्री 108 विमर्शसागर जी व मुनि श्री विनर्घसागर जी का व वर्ष 2004 में परमपूज्य मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज का चातुर्मास संपन्न हुआ । श्री प्रमाणसागर जी महाराज के सान्निध्य में मंदिर - स्थापना के 125वें वर्ष का आयोजन “श्री नेमिनाथ महोत्सव" के रूप में अविस्मरणीय कार्यक्रमों के साथ संपन्न हुआ । वर्ष 2007 में पूजनीया आर्यिका श्री 105 अकम्पमति माता जी का स-संघ चातुर्मास संपन्न हुआ। वर्ष 2008 में पूजनीया आर्यिका श्री तपोमति माता जी का ससंघ सान्निध्य ग्रीष्म काल में प्राप्त हुआ। इस बीच में अनेकानेक आचार्यों, मुनियों और आर्यिका माताओं ने बिहार करते हुए सतना नगरी में पधार कर हम सभी को उपकृत किया है, आलेख के कलेवर-वृद्धि के भय से हम उन सब का नाम न देते हुए उनके श्री चरणों में सादर नमोस्तु, वन्दामि और वन्दना कर रहे हैं।
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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