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________________ 1741 स्वरूप-संबोधन-परिशीलन श्लो . : 20 श्लोक'-20 उत्थानिका- यहाँ पर शिष्य आचार्य-भगवन् से प्रार्थना करता है कि हे भगवन्! शिव-प्राप्ति का सहज उपाय क्या है?....... समाधान- आचार्य-देव कहते हैं स्वपरञ्चेति वस्तु त्वं वस्तुरूपेण भावय। उपेक्षाभावनोत्कर्षपर्यन्ते शिवमाप्नुहि ।। अन्वयार्थ- (त्वं) तू, (स्वं) अपने आत्म तत्त्व को, (च) और, (परं) अन्य वस्तु को, (वस्तुरूपेण) वस्तु स्वभाव से, (भावय) भावना कर, (इति) इसप्रकार, (उपेक्षाभावनोत्कर्षपर्यन्ते) उपेक्षा यानी राग-द्वेष-रहित-पना-भाव की पूर्ण वृद्धि हो जाने पर, (शिवम्) मोक्ष को, (आप्नुहि) प्राप्त कर ||20 | परिशीलन- मुमुक्षुओ! आचार्य-प्रवर इस कारिका में परम उपेक्षा-भाव की प्रधानता से तत्त्वोपदेश कर रहे हैं। उत्कर्ष-मार्ग ज्ञानियो! उपेक्षा-भाव है, जहाँ-जहाँ उपेक्षाएँ होती हैं, वहाँ-वहाँ ज्ञानियो! व्यवहार से कहें, तो उपेक्षाएँ होने लगती हैं। मनीषियो! ध्रुव भगवद्-स्वरूप पर यदि लक्ष्य है, तो ध्यान से समझना, यह गम्भीर तत्त्व का विषय है। निश्चय नय एवं व्यवहार नय दोनों पक्षों से समझना अनिवार्य है, जहाँ जीव की पर-पदार्थों में अपेक्षा होती है, वहाँ संयम-मार्ग में उपेक्षा दिखती है। उपेक्षा का एक अर्थ पृथक् / भिन्नत्व द्वेष-दृष्टि से देखना, दूसरा अर्थ माध्यस्थ भाव है, यानी राग-द्वेष का अभाव और पक्षपात से रहित वृत्ति। प्रथम अर्थ की अपेक्षा से सर्वप्रथम कथन करते हैं- ज्ञानियो! लोक-दृष्टि से भी देखा जाय, तो जो व्यक्ति जहाँ अधिक परिचय को प्राप्त होता है, वहाँ अपमान का भी वरण करता है, जहाँ अपेक्षा प्रारंभ हुई, वहीं उपेक्षा होने लगती है, अधिक परिचय में अवज्ञा का होना सहज है, जहाँ चंदन अधिक होता है, वहाँ के लोग शीत निवारण हेतु चंदन की लकड़ी को जलाकर तापते हैं, जहाँ अभाव है, वहाँ सुगन्ध के लिए एक टुकड़ा भी सुरक्षित रखते हैं। ध्यान दो- जो वस्तु कठिनता से प्राप्त होती है, वह आदर को 1. कुछ विद्वान् इस बीसवें श्लोक को स्वरूप-सम्बोधन का हिस्सा नहीं मानते हैं, पर इसके बिना भाव की दृष्टि से पंचविंशतिका नहीं बनती, अतः भावात्मक रूप में इस श्लोक का होना अनिवार्य है।
SR No.032433
Book TitleSwarup Sambodhan Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhasagar Acharya and Others
PublisherMahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
Publication Year2009
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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